खुद भाजपा आलाकमान गिरते मतदान को ले कर किस तरह चिंतित है, यह खीझ उस के एक बयान से समझ में भी आती है जिस में कहा गया है कि कम मतदान का मतलब यह भी हो सकता है कि जो मतदाता विपक्ष और उस की दिशा व नेतृत्व की कमी से निराश हैं वे वोट देने के लिए नहीं जा रहे हैं. कम मतदान का यह मतलब कतई नहीं है कि लोग सत्तारूढ़ दल के प्रति उदासीन हैं.
पर हकीकत यह है कि भाजपा आलाकमान ने खुलेतौर पर हिटलरी फरमान जारी करने शुरू कर दिए हैं. भाजपा की राज्य इकाइयों से कम मतदान के बाबत लिखित में सफाई मांगी गई है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तो मध्यप्रदेश के राजगढ़ से यह एलान कर दिया है कि जिन मंत्रियों के इलाकों से मतदान कम होगा उन से मंत्री पद छीन लिया जाएगा और जो विधायक ज्यादा मतदान कराएंगे उन्हें मंत्री पद से नवाजा जाएगा.

भाजपा की बड़ी चिंता हिंदीभाषी राज्य उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार और मध्यप्रदेश ज्यादा हैं. इन चारों ही राज्यों में मतदान प्रतिशत गिरा है. उत्तरप्रदेश में दूसरे चरण में केवल 54.85 फीसदी मतदान हुआ जबकि 2019 में 62 फीसदी वोटिंग हुई थी. राजस्थान में भी 2019 के मुकाबले 5 फीसदी कम वोटिंग हुई और मध्यप्रदेश में भी 8 फीसदी के लगभग मतदान कम हुआ.

भाजपाई चिंता की दूसरी बड़ी वजह महिलाओं की मतदान में कम होती दिलचस्पी है. मध्यप्रदेश में महिला मतदान में 11 फीसदी की अहम गिरावट दर्ज हुई है. लगभग यही आंकड़ा दूसरे हिंदीभाषी राज्यों का है, जहां से भाजपा अपनी जीत के प्रति आश्वस्त थी लेकिन अब उस का भरोसा डगमगाने लगा है. यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों के बाद एक इंग्लिश अखबार को दिए स्पैशल इंटरव्यू से भी साबित होती है कि भाजपा अब तेजी से मुद्दे बदलने को मजबूर हो गई है.

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