पुराना जनता दल अब भारतीय जनता पार्टी से निबटने के लिए फिर से एक हो रहा है. नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, ओम प्रकाश चौटाला, मुलायम सिंह यादव आदि मिल कर नई पार्टी बनाने के चक्कर में हैं ताकि वोटों के बंटवारे का लाभ भाजपा को न मिल सके. भारतीय जनता पार्टी इस बार केवल 31.2 प्रतिशत मत पा कर पूरा बहुमत पा गई क्योंकि वोट कांगे्रस व जनता दलों में बंट गए.

उम्मीद है कि ममता बनर्जी, वामपंथी दल और दूसरे दल भी मिल जाएंगे और कांगे्रस भी निकट आ कर सहयोग देगी.

वोटों का बंटवारा न हो, यह तो समझा जा सकता है पर भारतीय जनता पार्टी में ऐसा क्या अवगुण है कि ये सारे दल उस का मुकाबला करने के लिए अपने वर्षों पुराने मतभेदों और गरूर को भुला रहे हैं? जैसे भाजपा राज करने के लिए आई है और वैसे ही ये सारे दल भी राज करना चाहते हैं.

भाजपा का धर्म का अपना खास एजेंडा है पर क्या इन दलों के नेता धर्म का व्यापार नहीं करते? लालू यादव तो इन में खास हैं जो धर्म की डफली बजाते रहते हैं. केवल मुसलमानों का हिमायती बनने को धर्म की दुकानदारी न करना नहीं कहा जा सकता क्योंकि भारत का मुसलमान तो खुद धर्म के दुकानदारों के हाथों बुरी तरह बिका हुआ है.

जनता परिवार के दलों की खासीयत यह है कि वे हिंदू वर्णव्यवस्था के शिकार भारी जनसमूह, आबादी का लगभग 95 प्रतिशत का मानसिक प्रतिनिधित्व करते हैं. इस देश पर हिंदू राज असल में 3 प्रतिशत लोगों ने किया और जब राजा हिंदू नहीं थे तब भी समाज पर इन्हीं लोगों का शास्त्रों के हवाले से राज था.

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