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नस्लीय सद्भाव

75 वर्षीय लाल थनहवला, जो कि मिजोरम के 5 बार से मुख्यमंत्री हैं, ने अपना नहीं, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत का दर्द बयां कर ही डाला कि देश में जहांजहां भी वे गए, वहां उन्हें नस्लीय दुर्व्यवहार भोगना पड़ा.

75 वर्षीय लाल थनहवला, जो कि मिजोरम के 5 बार से मुख्यमंत्री हैं, ने अपना नहीं, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत का दर्द बयां कर ही डाला कि देश में जहांजहां भी वे गए, वहां उन्हें नस्लीय दुर्व्यवहार भोगना पड़ा.

बात आम है पर विश्वगुरु बन जाने का सपना देखने वालों को सबक है कि देश के हर कोने में धर्म और जातिवाद के अलावा नस्लीय भेदभाव भी फैला है. ऐसे में क्या कुछ खास प्रजाति के लोग ही भारतीय, जिन्हें अब हिंदू कहना बेहतर होगा, कहलाने के हकदार हैं. पूर्वोत्तर के लोगों का देशभर में तरहतरह के संबोधनों से मजाक बनाया जाता है. उन्हें विदेशी और उन में भी चीनी समझा जाता है. इस गड़बड़झाले की बड़ी वजह, जो ईसाई मूल के लाल थनहवला शायद ही समझ पाएं, यह है कि इस देश में भारतीय उन्हें ही समझा जाता है जिन के नैननक्श और रंग हिंदू देवताओं से मिलतेजुलते हों.      

 

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भारत में विदेशियों का रहना मुश्किल होता जा रहा है. चाहे पश्चिमी देशों के गोरे हों या अफ्रीका के काले, हमारा रंग भेद इतना ज्यादा गहरा गया है कि किसी को नहीं बख्शा जा रहा. अकेली पर्यटन पर आई गोरी युवतियों को तो यहां गाइड, टैक्सी ड्राइवर, होटलों के कर्मचारी हरदम बिस्तर पर बिछने को तैयार मानते हैं और उन के नानुकर करने पर बलात्कार कर मार तक डालते हैं. कितनों का ही गैंगरेप किया जाता है.

अभी दिल्ली के निकट नोएडा में रह रहे कई सौ अफ्रीकी छात्रों के साथ बुरी तरह मारपीट की गई. आरोप वैसा ही था जैसा मुसलिम पर गौमांस रखने पर लगाया जाता है. कहा गया कि अफ्रीकियों ने एक स्थानीय युवक को नशे की आदत डाल दी और वह मर गया. इस पर सैकड़ों की भीड़ ने कालों पर हमले शुरू कर दिए. कभी मौल में तो कभी घरों के आसपास. एक युवती को टैक्सी में से घसीट कर बुरी तरह मारा. नोएडा तो छोडि़ए जो उत्तर प्रदेश में आता है, दिल्ली में भी अफ्रीकियों को रंग की वजह से छेड़ा जाता है. अफ्रीकी दब्बू नहीं होते और प्रतिकार करते हैं तो भीड़ जमा कर ली जाती है. कई बस्तियों में इस तरह के कांड हो चुके हैं. आम आदमी पार्टी के एक मंत्री की एक बार अच्छी मुठभेड़ हुई और उन्होंने सभी अफ्रीकियों को किसी न किसी तरह का अपराधी घोषित कर दिया.

यह रंग भेद हमारी जाति, वर्ण भेद की उपज है. जाति हमारी रगों में इस बुरी तरह भरी है कि हर दूसरा व्यक्ति हमें या तो मजाक का पात्र लगता है या दुश्मन. रंग के कारण हमारे यहां की सांवली युवतियां अपनी पूरी जिंदगी मरमर कर बिता देती हैं. काले युवकों का भी यही हाल होता है. अफ्रीकियों को तो नीचा इसीलिए समझा जाता है कि उन का रंग हमारे गांवों के दलित मजदूरों का सा होता है. दूसरी तरफ गोरे को हर कोई कच्चा चबा लेना चाहता है. गोरी युवतियों का चाहे देशी ही हों, घर से बाहर निकलना दूभर रहता है. उन की शादी तो आसानी से हो जाती है पर वे हर समय भयभीत रहती हैं कि कब, कौन आक्रमण कर दे.

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