नरेंद्र मोदी अपने कर्मों से अच्छे दिन तो नहीं ला पा रहे पर दुनिया के दूसरे देशों के अच्छे कर्मों का वह फायदा जरूर उठा ले जाएंगे. पिछले एक साल से कच्चे तेल, जिस से पैट्रोल, डीजल, गैस, मिट्टी का तेल, प्लास्टिक बनते हैं, के दाम लगातार गिर रहे हैं. पहले कच्चे तेल के विश्व बाजार में दाम जम कर बढ़े थे और उस के चलते हर चीज के दाम बढ़ गए थे. लिहाजा, महंगाई उफान पर थी. मनमोहन सिंह सरकार इसी की शिकार हुई थी. अब पूरे विश्व में अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ाने लगी हैं जिस से कच्चे तेल की मांग घट रही है. ऊपर से अमेरिका ने अपने देश में तेल या उस की जगह ले सकने वाली प्राकृतिक गैस को निकालने का सस्ता तरीका ढूंढ़ कर, जम कर उत्पादन शुरू कर दिया है. अमेरिका के पंपों पर पैट्रोल अब कोकाकोला से भी सस्ता बिक रहा है, लगभग 300 रुपए का गैलन. अमेरिका 88 लाख बैरल तेल का उत्पादन कर रहा है जो 1986 से अब तक सब से ज्यादा है.

पश्चिमी एशिया में युद्ध का माहौल होने के कारण वहां भी मांग कम हो गई है. वहां के देश सड़कों, मकानों, उद्योगों पर पैसा खर्च नहीं कर रहे. वहां के शासक ज्यादा तेल उत्पादन कर के पैसा पश्चिमी देशों में जमा कर रहे हैं ताकि तख्ता पलटे तो भी उन्हें लगातार पैसा मिलता रहे. चीन के अलावा दुनिया के तकरीबन सभी देशों में कच्चे तेल की खपत घट रही है. अब आम लोगों को बढ़ते प्रदूषण से छुटकारा मिलेगा, फायदा होगा क्योंकि मांग कम होने का परिणाम होगा वातावरण में कम धुआं. नेता कई बार तो अच्छा काम करते हैं पर कई बार उन्हें दूसरों के अच्छे कामों का फायदा बैठेबिठाए ही मिल जाता है. तेल के मोरचे पर नरेंद्र मोदी सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया है पर विश्व बाजार ने उन की इज्जत बचा ली.

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