किराए की कोख पर जो कानून सरकार बनाने जा रही है वह एकदम अव्यावहारिक है. कानून का मसौदा नौकरशाहों की देन है जो हर समय यथास्थिति बनाए रखने वाला चश्मा पहनते हैं. वे जो भी कानून बनाते हैं उस का उद्देश्य जनता के अधिकार छीनना होता है और अफसरशाही के अधिकार बढ़ाना होता है. यह प्रस्तावित कानून भी कुछ ऐसा ही है. किराए की कोख के बारे में हम अपने धर्मग्रंथ कितना ही खंगाल लें, वहां इस का जिक्र नहीं मिलेगा. टैस्टट्यूब बेबी का जन्म आधुनिक चिकित्सा अनुसंधान की देन है. दुनिया के देशों के कानूनों और समाजों को बदलती तकनीक को खुले हाथों स्वीकारना चाहिए, न कि उस के विकास में अड़चनें डालनी चाहिए. यह सच है कि 20वीं सदी से पहले की मान्यताएं इन नई खोजों और तकनीकों के कारण अब खतरे में हैं.

कहने को यह किराए की कोख का कानून उन गरीब औरतों को सुरक्षा देने के लिए है जिन्हें 2-4 लाख रुपए दे कर, बाहर डिश में तैयार किया गया भू्रण, औरत के गर्भ में इंजैक्शन के जरिए प्रतिरोपित किया जाता है. इस में औरत को कोई शारीरिक हानि होती हो, ऐसा मामला सामने नहीं आया है. उस के गर्भ में एक ऐसा शिशु पलने लगता है जिस में उस के जैविक गुण नहीं होते. इस में आपत्ति क्यों हो? यह किराए की कोख कौन लेगा? वही न, जिस के अपना बच्चा नहीं हो सकता. हो सकता है अकेले युवक या औरत भी इस सुविधा के तहत किसी स्पर्म या एग डोनर के साथ अपने अंश को डिश में फर्टिलाइज करा कर बच्चा पाने की कोशिश करें. उस में भी कोई खराबी नहीं. वैसे भी हर साल लाखों बच्चे अविवाहितों के होते हैं जो गर्भपात के सहारे गिरा दिए जाते हैं. विवाह के बिना गर्भ ठहरना हमेशा से होता रहा है. पहले गर्भपात कराना आसान नहीं था, आज डाक्टर के यहां नजलेजुकाम के इलाज की तरह यह सेवा भी उपलब्ध है.

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