‘सैर कर दुनिया की गाफ़िल जिंदगानी फिर कहां, जिंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहां...’

वाकई यह उम्र होती ही घूमनेफिरने की है और मेरा भी शौक रहा है नईनई जगह देखने, वहां के लोगों से मिलने और नए, अनूठे अनुभवों को महसूस करने का. मेरा ऐसा ही एक यात्रा वृत्तांत है. लंबे समय से इच्छा थी मुंबई घूमने की, लेकिन मुंबई बहुत बड़ा और महंगा शहर है और मैं ठहरा एक स्टूडैंट, जिस का हाथ हमेशा तंग रहता है. होस्टल और कालेज फीस देने के बाद मेरे पास इतने रुपए नहीं बचते कि मुंबई जाना, रहना और घूमना अफोर्ड  कर सकूं. लेकिन कहते हैं न कि ‘जहां चाह वहां राह’ तो मैं ने 5-6 दोस्तों को तैयार किया जो मुंबई घूमना चाहते थे. हम पांचों फक्कड़ थे लेकिन सब ने कुछ न कुछ जुगाड़ लगाया और आनेजाने के टिकट के बाद हमारे पास 1 हजार रुपए जमा थे, लेकिन इतने में 2 दिन के लिए मुंबई प्रवास संभव नहीं था.

मन में खयाल आया कि अगर किसी तरह मुंबई में कोई जानपहचान वाला या फिर कोई यारदोस्त ऐसा निकल आए जिस के घर पर रुका जा सके और खानापीना भी हो जाए तो इतने कम बजट में भी मुंबई घूमने का अरमान पूरा हो सकता है. सोचविचार कर मैं ने तुरंत अपना फेसबुक अकाउंट खोला, काफी जद्दोजेहद के बाद मेरी स्कूल टाइम के फ्रैंड रवि से मुलाकात हुई, जो अब मुंबई में अच्छी जौब कर रहा था. उसे फोन मिलाया औैर पुराने दिनों की यादें ताजा करने के साथसाथ अपनी ख्वाहिश भी बताई. रवि ने मुझे अपने पूरे ग्रुप के साथ मुंबई आमंत्रित कर लिया. हम सब दोस्त नियत तिथि पर ट्रेन से मुंबई के लिए रवाना हुए. मुंबई सैंट्रल पर उतरे तो बेहिसाब भीड़ व शोरगुल से नर्वस हो गए. गनीमत थी कि रवि हमें लेने आ गया था.

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