दिमाग में हैं जीपीएस

आज हम कहीं भी पहुंचने के लिए टैक्नोलौजी के शुक्रगुजार हैं, जिस में गूगल मैप और जीपीएस सब से बड़ा रोल निभाते हैं. लेकिन जब ये चीजें नहीं थीं या जो आज भी इन का इस्तेमाल नहीं करते हैं वे सही चीजों को कैसे याद रखते हैं. सवाल यह है कि क्या इंसान के दिमाग में कोई आंतरिक जीपीएस है? इस पर रिसर्च हुई और वैज्ञानिकों ने अहम जानकारियां जुटाई हैं.  1960 के अंत में एक रिसर्च हुई कि दिमाग कैसे किसी चीज को याद रखता है और चूहे भूलभुलैया के रास्तों को कैसे पहचानते हैं. इस में देखा गया कि चूहे अलगअलग जगह पर जाते थे तो उन की अलगअलग विशिष्ट तंत्रिका कोशिका ऐक्टिव होती थीं. इस से उन के दिमाग में ‘प्लेस सैल’ जगह का पता चला.

इस के बाद चूहों के दिमाग में प्लेस सैल को सक्रिय करने वाले संकेतों का पता लगाया गया. इन संकेतों का कंप्यूटर से विश्लेषण किया गया और उन के हिलनेडुलने से एक नक्शा बना. इस के बाद चूहों के दिमाग के एक हिस्से को सुन्न किया गया और देखा कि उसे संकेत कहां से आते हैं. चूहों को जहां छोड़ा गया था वह जगह षट्कोणीय नहीं थी पर उन के दिमाग में संकेत इसी पैटर्न पर आते थे. यह दिमाग की भाषा का एक कोड है, जिस का इस्तेमाल चूहों ने रास्ता ढूंढ़ने के लिए किया. दूसरी चौंकाने वाली बात यह थी कि षट्कोणीय ग्रिडों के कोनों के बीच बढ़ती दूरी हर पौइंट पर एक निश्चित अनुपात में बढ़ रही थी. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अनोखी खोज है कि दिमाग इतने सरल गणित का इस्तेमाल करता है. इस का मतलब है बच्चे, चूहे या इंसान जिस जगह पर रहते हैं उन के दिमाग में शुरू में ही एक खाका बन जाता है, जो धीरेधीरे विकसित होता है.

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