अनोखा परिदृश्य है. एक तरफ देश के हर कोने को वाईफाई से लैस करने की सरकारी मुहिम चालू है तो दूसरी तरफ कई विकसित देशों में इस बात को ले कर घमासान मचा हुआ है कि बच्चों के स्कूल और अस्पतालों को पूरी तरह से वाईफाई मुक्त किया जाए.

यही नहीं, वाईफाई के आसन्न और भयानक खतरों पर वहां दर्जनों गहन शोध रिपोर्टें भी आ चुकी हैं. पर कुल मिला कर माहौल शहर के समूचे परिक्षेत्र को वाईफाई करने के खिलाफ ही है. अधिकांश लोग नहीं चाहते कि वे चौबीसों घंटे सातों दिन लगातार वाईफाई की जद में रहें, तब भी जब वे उस का इस्तेमाल नहीं कर रहे हों.

बच्चों को ले कर तो कई देशों के अभिभावकों ने अभियान ही छेड़ रखा है. वहीं अपने देश में लोग या तो समूचे देश को वाईफाई करने के समर्थक हैं या फिर इस मसले के प्रति उदासीन. आशंकाओं के प्रति जागरूकता और उस का कोई तार्किक विरोध फिलहाल शुरू नहीं हुआ है. वैज्ञानिकों, चिकित्सकों,शोधार्थियों के बड़े समूह और उन के निष्कर्षों को मानें तो यह चौबीसों घंटे मुफ्त मिलने वाला सरकारी वाईफाई लंबे समय में बेहद खतरनाक और महंगा पड़ने वाला है.

यह हैरान कर देने वाली बात है कि जहां विदेशी मीडिया ऐसी खबरों और रिपोर्टों से पटा पड़ा है कि बेलगाम और हर जगह वाईफाई की उपस्थिति बहुत घातक है वहीं भारतीय मीडिया में शोध तो क्या, इस संदर्भ के समाचार भी नहीं हैं, बल्कि पूरे परिक्षेत्र को वाईफाई करने को विकास की शानदार उपलब्धि के बतौर प्रशंसनीय नजरों से देखा व प्रचारित किया जा रहा है.

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