“रुचि, आज शाम क्या कर रही हो, चलो न कहीं घूमते हैं. विम्मी भी गई है. तुम्हारा पति भी एक हफ़्ते को बाहर गया है. क्या कहती हो, बताओ?” व्योम ने अपनी दोस्त से कहा.

“शाम को बता पाऊंगी, कल सैमिनार है.”

“ठीक है, हो सके तो चलना. विम्मी के बिना घर में घुसने का मन ही नहीं होता.”

“ओके बाबा, देखती हूं” कह कर रुचि ने फ़ोन काट दिया.

दिन का मौसम उमड़घुमड़ कर सिसकियां ले रहा था, कभी हवा का झोंका पत्तियों की आपस में सरसराहट,  कभी शांत सी घुमस जो बिसूरती सी जान पड़ती थी. व्योम को आज घर जाने का मन नहीं था, पत्नी विम्मी डिलीवरी के लिए मायके गई हुई थी और दोस्त रोहन  विदेश गया हुआ था, उस की पत्नी थी रुचि.

रुचि, रुचि का पति रोहन, व्योम और व्योम की पत्नी  विम्मी चारों कालेज समय से गहरे दोस्त थे. पिकनिक हो पार्टी या कोई स्कूल का फंक्शन, यह चौकड़ी मशहूर थी. एकदूसरे के बिना ये चारों ही अधूरे थे. रोज़ ही मिलतेजुलते. रुचि कब रोहन के नज़दीक आ गई, खुद इन दोनों को भी पता नहीं चला. दोनों के मातापिता आधुनिक विचारों के थे, इसलिए शादी में कोई दिक़्क़त नहीं हुई.

रुचि का पति विदेश गया था, उसे  रोहन की याद आ रही थी. आ रहा था गुजरा खूबसूरत लमहा, वो शादी की तैयारी, उस की शादी के बाद फिर व्योम व विम्मी का एक हो जाना. यादों ने दस्तक दी तो एक मुसकान होंठों पर आ गई. यादें जाने कब कहां गिरफ़्त में ले लें.

कालेज से लौट ख़ाना ले कर  बैठी तो यादों के पन्ने पलटने लगे,

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