आज रमेशजी के रिटायरमैंट के दिन औफिस में पार्टी थी. इस अवसर पर उन का बेटा वरुण बहू सीता और बेटी रोमी अपने पति के साथ आई हुई थी. सभी खुश थे. उन की पत्नी उर्वशी की खुशी आज देखते ही बनती थी. रमेशजी की फरमाइश पर वह आज ब्यूटीपार्लर से सज कर आई थी. उन्हें देख कर कोई उन की उम्र का अंदाजा भी नहीं लगा सकता था. वह बहुत सुंदर लग रही थी.
विदाई के क्षणों में औफिस के सभी कर्मचारी भावुक हो रहे थे. यहां रमेशजी ने पूरे 30 बरस तक नौकरी की थी. वे हर कर्मचारी के सुखदुख से परिचित थे. यह उन के कुशल व्यवहार का परिणाम था कि वे औफिस के हर कर्मचारी के परिवार के साथ पूरी तरह जुड़े हुए थे. उन्होंने हरेक के सुखदुख में पूरा साथ दिया था. जैसाकि हरेक के साथ होता है, इस अवसर पर सब उन की तारीफ कर रहे थे लेकिन अंतर इतना था कि उन की तारीफ झूठी नहीं थी. कहने वालों की आंखें बता रही थीं कि उन्हें रमेशजी की रिटायरमैंट पर कितना दुख हो रहा है.
हर कोई उन के बारे में कुछ न कुछ अपना अनुभव बांट रहा था. यह देख कर उर्वशी की आंखें फिर नम हो गई थीं. रमेशजी ने उन्हें कभी इतना कुछ नहीं बताया था जितना आज औफिस के कर्मचारी बता रहे थे. उन के साथ काम करने वाली आया फफकफफक कर रो पड़ी, ‘‘बाबूजी, आज लगता है जैसे मेरा यहां कोई नहीं रहा.’’
‘‘ऐसा नहीं कहते शांति. यहां पर इतने लोग हैं.’’