मैं भी जरा क्रोध में बोलती हुई धोती को उठा कर बाहर डाल आई थी. बहुत दुख हुआ था नीरज के सोचने के ढंग पर. फिल्म देखते हुए भी दिल उखड़ाउखड़ा रहा. परंतु मैं ने भी हिम्मत न हारी.
तीसरे दिन शाम को 6 नंबर वाली रमा हमारे यहां आईं तो मुझे आश्चर्य हुआ. पर वे बड़े प्रेम से अभिवादन कर के बैठते हुए बोलीं, ‘‘शीलाजी, आप कलम चलाने के साथसाथ कढ़ाई में भी अत्यंत निपुण हैं, यह तो हमें अभी सप्ताहभर पहले ही सौदामिनीजी ने बताया है. सच, परसों दोपहर आप ने बरामदे में जो धोती सुखाने के लिए डाल रखी थी, उस पर कढ़े हुए बूटे इतने सुंदर लग रहे थे कि मैं तो उसी समय आने वाली थी लेकिन आप उस दिन फिल्म देखने चली गईं.’’
नीरज उस समय वहीं बैठा था. रमा अपनी बात कह रही थीं और हम एकदूसरे के चेहरों को देख रहे थे. मैं अपनी खुशी को बड़ी मुश्किल से रोक पा रही थी और नीरज अपनी झेंप को किसी तरह भी छिपाने में समर्थ नहीं हो रहा था. आखिर उठ कर चल दिया. रमा जब चली गईं तो मैं ने उस से कहा, ‘‘अब बताओ कि वे मेरी धोती के सस्तेपन पर हंस रही थीं या उस पर कढ़े हुए बेलबूटों की सराहना कर रही थीं.’’
‘‘हां, भई, चलो तुम्हीं ठीक हो. मान गए हम तुम्हें.’’ पहली बार उस ने अपनी गलती स्वीकारी. उस के बाद एक आत्मसंतोष का भाव उस के चेहरे पर दिखाई देने लगा.
इस कालोनी में रहने का एक बड़ा लाभ मुझे यह हुआ कि मध्यम और उच्च वर्ग, दोनों ही प्रकार के लोगों के जीवन का अध्ययन करने का अवसर मिला. मैं ने अनुभव किया बड़ीबड़ी कोठियों में रहने वाले व धन की अपार राशि के मालिक होते हुए भी अमीर लोग कितनी ही समस्याओं व जटिलताओं से जकड़े हुए हैं. उधर अपने जैसे मध्यम वर्ग के लोगों की भी कुछ अपनी परेशानियां व उलझनें थीं.
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