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अनुरंजन नावे ने उस की यह बात पकड़ कर उसे इन दोनों विभागों के छात्रों से विमुख कर दिया था. मैनेजमेंट के छात्र भी कहां अधिक पढ़ाई चाहते थे. और रही बात विज्ञान के छात्रों की, तो वे भी ज्यादा बोझ तले नहीं जीना चाहते थे. कुलमिला कर असाइनमेंट या गृहकार्य ही कोई नहीं चाहता था, और अधिक की तो बात ही नहीं बनती. उस के विरोधी ने अपने हाथ खोल दिए थे. जयेश समझ गया कि उस का विरोधी किस हद तक जा सकता है. ऐसा काम कम से कम वह तो कभी न करता.

प्रसनजीत ने जब वह पोस्टर देखा, तो जयेश से कहा, “बहुत दुर्भाग्य की बात है.”

जयेश ने कट्टरता से कहा, “दुर्भाग्य नहीं, बिलकुल अनुचित व्यवहार है.”

प्रसनजीत बोला, “तुम ने ये क्यों उस से कह दिया कि असाइनमेंट करना तुम को अच्छा लगता है?”

जयेश बोला, “मैं ने तो ऐसे ही कह दिया था. मैं तो ऐसे ही सभी से यह कहता रहता हूं. मुझे थोड़े ही पता था...”

प्रसनजीत बोला, “चुनाव के इंचार्ज नीलेंदु सर से शिकायत दर्ज कर के कोई फायदा नहीं है.”

जयेश उन से कहने लगा, “लेकिन, उस ने मेरे कथन को संदर्भ से बाहर कर दिया है और मेरे खिलाफ इस का इस्तेमाल कर रहा है.”

प्रसनजीत जयेश को समझाते हुए बोला, “कितनों को तुम संदर्भ बताते फिरोगे.”

तभी संदेश भी वहां आ पहुंचा. सारा मसला उसे पता था. उस ने कहा, “राजनीति में ऐसा ही होता है. विरोधी पक्ष वाले सत्य को इस तरह से रबड़ की तरह खींच कर पेश करते हैं कि उस का मूल अर्थ ही गायब हो जाए.”

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