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‘‘सब से पहला तो यही है कि आप ने गाड़ी पूरे महीने के लिए किराए पर रखी है. लेकिन आप की लौगबुक कहती है कि आप इस का इस्तेमाल 15 दिनों से अधिक नहीं करतीं. यानी, आप ड्राइवर को मुफ्त का पैसा दे कर विभाग को चूना लगा रही हैं. क्यों न विभाग को होने वाले इस नुकसान की भरपाई आप के वेतन में से की जाए,’’ उत्तम ने फिर से दांत दिखाए.

‘‘बेशक ड्राइवर को पैसा पूरे महीने का मिल रहा है लेकिन गाड़ी कम चला कर हम सरकार का ईंधन भी तो बचा रहे हैं. आप इसे इस नजरिए से देखिए न. वैसे भी हमारी तो इमरजैंसी ड्यूटी है. कभी भी बाहर जाना पड़ सकता है, इसलिए गाड़ी तो पूरे महीने और चौबीसों घंटे के लिए ही रखनी पड़ेगी न,’’ महिमा ने अपना पक्ष रखा.

‘‘हम किसे किस नजरिए से देखें, यह आप हम पर छोडि़ए. दूसरी बात यह है कि कर्मचारियों ने आकस्मिक अवकाश पहले मना लिया और उन के प्रार्थनापत्र बाद की तारीख में दर्ज हुए हैं,’’ उत्तम ने अपनी आंखें महिमा के चेहरे पर टिका दीं.

‘‘तो क्या हुआ? आकस्मिक अवकाश का अर्थ ही है कि उसे आकस्मिक कार्य के लिए लिया जाता है. अब आकस्मिकता भी भला कभी बता कर आती है. कर्मचारी ने अवकाश स्वीकृत तो करवाया ही है, चाहे देर से ही सही,’’ महिमा ने फिर से अपना पक्ष रखा.

‘‘ये सब बातें आप औडिट पैरा के जवाब में लिखलिख कर देती रहिएगा. और भी कई खामियां हैं जो मैं लिख कर ऊपर सरकार को भेज दूंगा. फिर आगे जो भी विभाग की मरजी,’’ उत्तम ने कहा और अपने कागजपत्र समेटने लगा. महिमा को समझ में नहीं आया कि क्या कहे.

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