‘‘छोडि़ए न मैडमजी, आप तो यह गरमागरम चाय पी कर तरोताजा हो जाइए. याद रखेंगी शीतल के हाथ की बनी चाय को,’’ औफिस की लेडी प्यून ने एक कप चाय उस की टेबल पर रख दी तो महिमा मुसकरा उठी.
बेचारी शीतल, अभी कोई उम्र है उस की नौकरी करने की. अभी 20 की ही तो हुई है. लेकिन क्या करे. घर की सारी जिम्मेदारी भी तो उसी के कंधों पर आ गई. सच में, सिर पर पिता का हाथ होना बहुत जरूरी है. महिमा की सोच की सूई अब औडिट से हट कर शीतल की तरफ घूम गई. सलवारसूट पहने हुए शीतल को देख उसे तरस आ गया.
शीतल के पिताजी इसी औफिस में बाबू थे. सालभर पहले एक सड़क दुर्घटना में उन की मृत्यु होने के बाद इसे अनुकंपा के आधार पर यहां चपरासी की नौकरी मिल गई. हालांकि शीतल ने आगे की पढ़ाई जारी रखी हुई है ताकि उसे क्लर्क की पोस्ट मिल जाए लेकिन इन सब कामों में वक्त लगता है.
खूबसूरत, चुलबुली शीतल पूरे औफिस की लाड़ली है. सब उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करते हैं. महिमा के भी खूब मुंह लगी है. महिमा चाय पीने लगी. चाय वाकई अच्छी बनी थी. अदरक का अलग स्वाद आ रहा था. उस का दिमाग एक बार फिर से राकेश के हिसाब में उलझ गया.
क्या होगा अगर औडिट में कोई औब्जैक्शन लगा भी तो. जवाब दे दिया जाएगा. यदि वह अपना काम ईमानदारी से कर रही है तो फिर उसे डरने की क्या जरूरत है. आखिर उस ने तय किया कि वह राकेश की इस डील को स्वीकार नहीं करेगी.
उस ने सभी सैक्शन अधिकारियों को निर्देश दिए कि हर एंट्री में पूरी सावधानी बरती जाए. पिछले वर्षों में हुए औडिट के औब्जैक्शन पढ़ कर उन्हें पहले ही दुरुस्त करने की हिदायत भी दी. वह खुद इन सब पर बराबर नजर रखे हुए थी. एक सप्ताह की मेहनत के बाद अब वह पूरी तरह से संतुष्ट थी. कहीं किसी कमी की गुंजाइश उसे नहीं लग रही थी.
‘‘मैडम, मैं औडिट पार्टी से उत्तम बोल रहा हूं. हमारी पार्टी कल सुबह 8 बजे पहुंच जाएगी. आप स्टेशन पर गाड़ी भिजवा दीजिएगा,’’ महिमा के पास फोन आया.
‘‘आप टैक्सी या औटो ले लीजिए. हमारी गाड़ी तो कल सुबह जल्दी ही साइट पर निकलेगी,’’ महिमा ने दोटूक जवाब दिया. दूसरी तरफ कुछ देर के लिए शांति सी रही.
‘‘चलिए, कोई बात नहीं. आप होटल का ऐड्रेस मेरे नंबर पर व्हाट्सऐप कर दीजिए,’’ उत्तम ने आगे कहा.
‘‘होटल तो नहीं है. आप चाहें तो आप के रुकने की व्यवस्था औफिशियल गैस्टहाउस में करवा सकती हूं. बहुत ही नौर्मल रेट पर अच्छी सुविधा आप को मिल जाएगी,’’ महिमा ने कहा, तो दूसरी तरफ फिर से शांति छा गई.
‘‘धन्यवाद मैडम, आप कष्ट न करें. हम अपनी व्यवस्था देख लेंगे. आप अपनी देख लीजिएगा,’’ उत्तम ने धमकीभरे स्वर में कहा और फोन कट गया. महिमा मानसिक रूप से अपनेआप को औडिट के लिए तैयार करने लगी. उस ने राकेश, विमल सहित सभी कर्मचारियों को समय से औफिस पहुंचने के निर्देश दिए और स्वयं साइट पर जाने की तैयारी करने लगी. शीतल से भी आवश्यक रूप से पूरा समय औफिस में रुकने को कहा गया. उसे हिदायत थी कि वह मेहमानों को 2 समय चायपानी करवा दे.
सुबह ठीक साढ़े 9 बजे उत्तम अपनी टीम के साथ औफिस में मौजूद था. आते ही उस ने कर्मचारियों का हाजिरी रजिस्टर मांगा. महिमा को टूर पर देख कर उस का पारा चढ़ गया. शेष सभी कर्मचारी औफिस में उपस्थित थे. राकेश विनम्रता से झुका हुआ उस के सामने खड़ा था.
‘‘क्या बात है राकेशजी, मैडम नई हैं या उन के लिए यह काम नया है? बहुत अकड़ में रहती हैं,’’ उत्तम ने अपनी कड़वाहट राकेश पर उतारी.
‘‘यह सब नई फसल है साहब, धीरेधीरे सीख जाएंगी. आप तो अपना काम शुरू कीजिए. हम हैं न आप की सेवा में. आप मुझे आदेश कीजिए,’’ राकेश ने उत्तम को खुश करने की कोशिश की. फिर उस ने शीतल को आवाज लगाई, ‘‘अरे शीतल, चायपानी का इंतजाम करो, भई.’’ थोड़ी ही देर में शीतल मुसकराती हुई चाय के साथ समोसे भी ले आई. समोसे देख कर उत्तम का मूड कुछ ठीक हुआ.
‘‘हूं, मैडम को साइट पर जाने का बहुत शौक है न, चलो, औडिट की शुरुआत मैडम की गाड़ी की लौगबुक से ही करते हैं. राकेशजी, पिछले 2 वर्षों की लौगबुक मंगवा दीजिए,’’ उत्तम ने समोसे खा कर एक लंबी सी डकार मारी. शीतल लौगबुक ले आई. उत्तम उस की एकएक एंट्री को बड़े गौर के साथ चैक करने लगा. वह साथसाथ एक सादे कागज पर नोट्स भी बनाता जा रहा था.
लौगबुक के बाद उस ने स्टौक रजिस्टर, बजट का इस्तेमाल, हाजिरी रजिस्टर, फर्नीचर आदि का हिसाब, टैलीफोन का बिल रजिस्टर आदि की जांच की. 2 दिन लगातार इस काम में जूझते उत्तम की मुलाकात महिमा से नहीं हुई. जानबूझ कर या काम की अधिकता, इन 2 दिनों में महिमा लगातार टूर पर ही बनी हुई थी. आज औफिस में औडिट का आखिरी दिन था. राकेश ने महिमा से औफिस में रह कर उत्तम से डिस्कस करने का अनुरोध किया.
ठीक साढ़े 9 बजे महिमा अपनी सीट पर थी. कुछ ही देर में राकेश उत्तम के साथ आता हुआ दिखाई दिया. महिमा ने देखा कि उत्तम नाटे कद का सांवला सा व्यक्ति है जिस की तोंद कुछ बाहर को निकली हुई है. पेट बड़ा होने के कारण पैंट बारबार कमर से लुढ़क कर नीचे आ रही थी जिसे वह बैल्ट से पकड़ कर ऊपर खींच रहा था. उस की यह हरकत देख कर महिमा के होंठों पर बरबस मुसकान आ गई. उसी समय शीतल कुछ फाइलें ले कर वहां आई. उसे उत्तम की हरकत पर मुसकराता देख कर शीतल भी खिलखिला दी.
‘‘नमस्कार मैडमजी, आज आखिर आप के दर्शन हो ही गए. मुझे तो लगा था आप से बिना मिले ही जाना होगा,’’ उत्तम के शब्दों में छिपे व्यंग्य को महिमा आसानी से समझ रही थी. उस ने उस को कोई जवाब नहीं दिया, सिर्फ बैठने का इशारा किया.
‘‘आप के औफिस में तो घपला ही घपला है, मैडमजी. जहां हाथ रखिए, वहीं दर्द है,’’ उत्तम ने एक पुरानी फिल्म के गाने की पंक्ति के साथ बत्तीसी खोल कर अपने पान से रंगे दांत दिखा दिए. उस के साथ ही उस के मुंह से आती गुटखे की गंध पूरे चैंबर में फैल गई. महिमा ने कुछ पल को अपनी सांस रोक कर उस गंध को हवा में लुप्त होने दिया, फिर हाथ को नाक के सामने लहराते हुए सांस ली. उत्तम उस की नाखुशी को समझ गया था. वह बाहर जा कर पीक थूक आया.
‘‘जी, दिखाइए, क्या घपला है,’’ महिमा ने उस से कागज मांगे.