सुबहसुबह तैयार हो कर जब भानुप्रकाश ने गैराज का ताला खोल कार को स्टार्ट करने लगे, तो वह घर्रघर्र कर के रह गई. वह एकदम से झल्ला कर के चिल्लाए, “सुधा… ओ सुधा, जरा बाहर तो आना.”
वह हड़बड़ाती हुई आई, तो भानुप्रकाश बोले- “देखो, आज फिर कार स्टार्ट नहीं हो रही है.”
“ओह… पिछले दिनों ही इसे रिपेयरिंग कराए थे ना. रोजरोज यह क्या हो जाता है?”
“मैं कहता था ना कि हमारा गैराज सही दिशा में नहीं है,” वह बोले, “पिछले सप्ताह इस में सांप निकला था, जिस से मैं बालबाल बचा था. यहां आए हमें 6 महीने भी नहीं हुए कि कार दो बार दुर्घटनाग्रस्त हुई है.”
“आप कहना क्या चाह रहे हैं?”
“यही कि गैराज में वास्तुदोष है. यही कारण है कि कार के साथ कुछ न कुछ परेशानी आ रही है और यह बीचबीच में खराब भी हो जा रही है. यह गैराज दक्षिणपश्चिम में है, जबकि इसे उत्तरपश्चिम यानी वायव्य कोण में होना चाहिए.”
“अरे, ऐसा कुछ नहीं है,” वह जानते हुए भी बोली कि भानु प्रकाश प्रारब्ध, ज्योतिष आदि पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं, उन की शंका का निवारण करना चाहा, “यह संयोग भी तो हो सकता है.”
“क्या बात करती हो, 18 लाख की नई गाड़ी है. और यह बारबार खराब हो जाती है. फिर यहां के गैराज में भी कोई न कोई हादसा हो जा रहा है. मुझे लगता है कि यह गैराज के सही दिशा में न होने के कारण है. मुझे अब किसी दूसरी जगह पर गैराज बनाना होगा.”
“कितनी मुश्किल से तो यह घर मिला है… इतने बड़े शहर में जगह कहां है, जो कोई अलग से गैराज बनवाए. फिर सरकार तो बनवाने से रही. और हम बनाएंगे तो हजारों रुपए का खर्च आएगा.”
“तो क्या करें…? रोजरोज की परेशानी तो नहीं देखी जा सकती?”
“लेकिन, गैराज बनाने के लिए जगह तो चाहिए?”
“जगह का क्या है… हम बंगले के सामने ही क्यों न गैराज बना लें?”
“अरे, इतनी अच्छी फुलवारी है. उसे तहसनहस कर दें.”
“और कोई उपाय भी तो नहीं है. मैं कल ही यहां काम लगा दूंगा.”
भानु प्रकाश सरकारी महकमे में कनिष्ठ सचिव ठहरे. बस ठेकेदार को बताना भर था. आननफानन काम लग गया. जहां कभी खूबसूरत फूलपत्तों के पौधे शोभायमान थे, उसे उजाड़ कर वहां सीमेंट की फर्श बन चुकी थी. लोहे की चादरों की दीवार और ऊपर एसबेस्टस की छत डाली जा चुकी थी. और पुराने गैराज का फाटक उखाड़ कर वहीं लगा दिया गया था. उन के कहेअनुसार अब गैराज वायव्य कोण अर्थात उत्तरपश्चिम में बन चुका था. और इसी चक्कर में बीसेक हजार रुपए खर्च हो गए थे.
“अब यहां कोई परेशानी नहीं होगी,” खुश होते हुए वह बोले.
“मगर, यह अब बंगले की चारदीवारी के बाहर है,” वह चिंतित स्वरों में बोली, “और, मैं ने सुना है, इधर चोरियां बहुत होती हैं.”
“अरे, ऐसा कुछ नहीं,” भानु प्रकाश निश्चिंत भाव से बोले, “बंगले के सामने ही तो है. फिर फाटक में मजबूत ताला लगाऊंगा.”
सुधा को इस बात का मलाल था कि एक खूबसूरत फुलवारी उजड़ गई थी और उस की जगह बंगले के ठीक सामने गैराज था. पहले बंगले के परिसर में ही चारदीवारी के भीतर गैराज था. अब गैराज के बाहर होने से उस के लिए अलग से ताले की व्यवस्था करनी पड़ी थी.
कुछ दिन तो ठीकठाक बीते. मगर, फिर भी एक हादसा हो ही गया.
वह 3 दिनों के लिए राजधानी में दौरे पर गए थे. वहीं उन्हें फोन आया कि गांव में मां की तबीयत ठीक नहीं है. उन्होंने तुरंत सुधा को फोन किया कि वह अविलंब गांव चली जाए. शाम की ट्रेन पकड़ कर वह गांव चली आई थी.
अगले दिन ही वह भी राजधानी से सीधे गांव चले आए.
उस के अगले दिन वह दोनों वापस लौटे. कार गैराज में नहीं थी. किसी ने ताला तोड़ कर दिनदहाड़े कार चोरी कर ली थी.
और वह थाने में कार चोरी की रपट लिखा रहे थे.