उन दिनों मैं इंटर में पढ़ता था. कालेज में सहशिक्षा थी, लेकिन भारतीय खासतौर पर कसबाई समाज आज की तरह खुला हुआ नहीं था. लड़के लड़की के बीच सामान्य बातचीत को भी संदेह की नजरों से देखा जाता था. प्यारमुहब्बत होते तो थे पर बहुत ही गोपनीयता के साथ. बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती थी.
हमारे कालेज में लड़कियां पढ़ती थीं लेकिन खामोशी के साथ सिर झुकाए आतीजाती थीं. वे कालेज परिसर में बिना कारण घूमतीफिरती भी नहीं थीं. ज्यादातर कौमन रूम में रहती थीं. क्लास शुरू होने के कुछ मिनट पहले आतीं और लड़कों से अलग एक ओर खड़ी रहतीं. शिक्षक के आने के बाद ही क्लास में प्रवेश करतीं और अगली बैंचों पर बैठ जातीं फिर शिक्षक के साथ ही निकलतीं.
उन्हीं दिनों मेरी क्लास में सरिता नामक एक अत्याधुनिक लड़की ने दाखिला लिया. वह बहुत ही खूबसूरत थी और लाल, पीले, नीले जैसे चटकदार रंगों की ड्रैसें पहन कर आती, जो उस पर खूब फबती भी थीं. कालेज के शिक्षकों से ले कर छात्रों तक में उसे ले कर उत्सुकता थी. कई लड़के तो उस का पीछा करते हुए उस का घर तक देख आए थे, लेकिन उस जमाने में छिछोरापन कम था इसलिए उस के साथ कोई छेड़खानी या अभद्रता नहीं हुई.
उन दिनों मेरा एक मित्र था जो पढ़ता तो दूसरे सैक्शन में था, लेकिन अकसर मुझ से मिलताजुलता रहता था. सरिता के कालेज में दाखिले के बाद मुझ से उस की मित्रता कुछ ज्यादा ही प्रगाढ़ होती जा रही थी. वह प्राय: हमारी क्लास शुरू होने के वक्त हमारे पास आ जाता और गप्पें मारने लगता. मैं ने कई दिन तक नोटिस करने के बाद महसूस किया कि वह बात तो हम लोगों से करता था, लेकिन उस की नजर सरिता पर टिकी रहती थी. एकाध बार उसे सरिता का पीछा करते हुए भी देखा गया. उस की कदकाठी अच्छी थी, लेकिन देखने में कुरूप था. मुझे लगा कि इसे सबक सिखाना चाहिए.
अगले दिन जब वह मेरे होस्टल में आया तो मैं ने कहा कि भाई अनिमेष, सरिता पूछ रही थी कि आप के साथ जो सांवले से, लंबे, स्मार्ट नौजवान रहते हैं वे कौन हैं व कहां रहते हैं?
अनिमेष का चेहरा खिल उठा, ‘‘अच्छा, वाकई में… कब पूछा उस ने?’’
‘‘प्रैक्टिकल रूम में 2-3 बार पूछ चुकी है. तुम उस से दोस्ती क्यों नहीं कर लेते,’’ मैं ने कहा.
’’ लेकिन कैसे?’’
‘‘तुम ऐसा करो कि शाम को 5 बजे मेरे पास आओ. फिर बताता हूं.’’
कालेज से लौट कर शाम के वक्त वह मेरे कमरे में आया. इस बीच मैं ने अपने कुछ मित्रों को अपनी योजना बता दी थी और उन्हें अभियान में शामिल कर लिया था. हम सब ने उस की प्रशंसा कर उसे फुला दिया.
‘‘करना क्या है?’’ उस ने मासूमियत से पूछा.
‘‘सब से पहले तो तुम्हारा हुलिया बदलना पड़ेगा, चलो.’’
हम ने पूरे होस्टल में घूम कर किसी का सूट, किसी का हैट, किसी का जूता इकट्ठा किया और उसे एक कार्टून की तरह मेकअप कर के तैयार कर दिया. इस के बाद उसे सरिता के घर की तरफ ले कर चले .
हम ने रास्ते में उसे समझाया कि तुम्हें उसे बुलवाना है और उस से फिजिक्स की कौपी यह कह कर मांगनी है कि तुम नोट कर के लौटा दोगे. इस तरह आपस में बातचीत की शुरुआत होगी. साथ ही हड़काया भी कि अगर तुम ने कहे मुताबिक नहीं किया तो हम सब तुम्हारी पिटाई कर देंगे.
सरिता के घर के पास पहुंच कर हम सभी ऐसी जगह छिप गए जहां से उन की गतिविधियां देख सकते थे, बातें सुन सकते थे लेकिन उन की नजर में नहीं आ सकते थे.
वह सहमता, सकुचाता हुआ सरिता के घर के दरवाजे पर पहुंचा, दस्तक दी. सरिता की मौसी बाहर निकलीं और बोलीं, ’’क्या बात है, किस से मिलना है?’’
’’जी…जी…जी… सरिता से काम है… मैं उस की क्लास में पढ़ता हूं.’’
मौसी ने सरिता को आवाज दी और खुद अंदर चली गईं.
’’यस, क्या बात है. आप कौन हैं? मुझ से क्या काम है?’’ सरिता ने आते ही पूछा.
’’जी…जी… 2-3 दिन के लिए… आ… आ… आप की फिजिक्स की कौपी चाहिए, फिर लौटा दूंगा.’’
’’तुम तो मेरी क्लास में नहीं पढ़ते. मेरी कौपी क्यों चाहिए. खूब समझती हूं, तुम जैसे लड़कों को. चुपचाप चलते बनो, नहीं तो चप्पल से पिटाई कर दूंगी. भागो यहां से.’’
’’जी…जी… आप गलत समझ रही हैं…’’
’’तुम जाते हो कि सब को बुलाऊं…’’ सरिता ने चिल्ला कर कहा.
’’ज…ज…जाता हूं… जाता हूं,’’ और वह चुपचाप वापस लौट आया.
हम ने इशारे से आगे आने को कहा. उस के घर से कुछ दूर पहुंचने के बाद पूछा, ’’अब बताओ कैसी रही?’’
’’बहुत बढि़या… उस ने कहा कि कौपी एकदो रोज बाद ले लीजिएगा… फिर चाय पीने के लिए अंदर आने को कहा लेकिन मैं ने क्षमा मांग ली कि फिर कभी.’’
हम एकदूसरे को देख मुसकराए, फिर उस की पीठ ठोंकते हुए कहा, ’’चलो, इसी बात पर पार्टी हो जाए.’’
उसे मजबूरन पार्टी देनी पड़ी. इस के बाद वह हम से कतराने लगा. हम में से किसी को देखता तो तुरंत बहाना बना कर दूसरी ओर निकल जाता.
3-4 दिन बाद वह पकड़ में आया तो हम ने पूछा, ’’कहो, भाई अनिमेष, सरिता से मिलने के बाद हमें भूल गए क्या, मत भूलो कि तुम्हारे काम हम ही आएंगे.’’
वह खिसियानी हंसी हंस कर रह गया. हम उसे पकड़ कर होस्टल ले आए और कहा कि आज तुम्हें फिर से सरिता के घर चलना है.
वह आनाकानी करता रहा लेकिन खुल कर बोल नहीं पाया कि उस दिन क्या हुआ था. हम ने फिर उसे धमका कर तैयार किया और उसे मजबूरन सरिता के घर जाना पड़ा.
इस बार सरिता ने दरवाजा खोलते ही उसे फटकार लगाई, ’’तुम फिर आ गए. लगता है, तुम बातों के देवता नहीं हो. बिना लात खाए नहीं मानोगे.’’
म…म…माफ कर दीजिए. कुछ मजबूरी थी, आना पड़ा. जा रहा हूं,’’ और वह पलट कर भागा.
हम ने थोड़ी दूर पर उसे लपक कर पकड़ा और पूछा, ’’क्या हुआ… बहुत जल्दी लौट आए?’’
’’हां… उस के घर वालों को शक हो गया है. अब वह मुझ से नहीं मिल सकेगी.’’
’’यह क्या बात हुई… शुरू होने के पहले ही खत्म हो गया अफसाना,’’ मैं ने कहा.
’’जाने दो भाई. कुछ मजबूरी होगी.. इस किस्से को अब खत्म करो…’’ उस ने पीछा छुड़ाने हेतु मासूमियत से कहा,
’’चलो, ठीक है. कल क्लास में मिलोगे न?’’
’’देखेंगे…’’
इस के बाद अनिमेष हमें पूरब में देखता तो पश्चिम की ओर रुख कर लेता. मेरी क्लास के वक्त आना भी उस ने छोड़ दिया था. हमारी योजना सफल रही.