अफरातफरी मची हुई थी. खासतौर पर रेलवे स्टेशन व उस के आसपास के इलाके में हजारो लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. कई चैनलों के संवाददाता अपने कैमरामेन के साथ आ डटे थे. शहर से गुजरने वाली मेल एक्सप्रेस का यहां से 150 किलोमीटर पहले डिरेलमैंट हो गया था. कई डब्बे पटरी से उतर गए थे. सारे चैनलों की कवरेज में मौत व घायलों के आंकड़ों में भिन्नता की ही समानता थी. जिन के परिजन, दोस्त इस ट्रेन में सवार थे उन के चेहरों  पर हवाईयां उड़ रही थीं.

रोज लड़ने वाले पतिपत्नी एकदूसरे की कुशलक्षेम लेने स्टेशन पर आ डटे थे. बेरोजगार बेटा, जिस की कि बाप से किसी न किसी मुददे पर रोज बहस होती थी, भी पिता की कुशलक्षेम के लिए चिंतित हो यहां से वहां घूम रहा था. सच में हिंदुस्तान मे संकटकाल में रिश्ते कितने प्यारे व प्रेमपूर्ण हो जाते हैं, यह यदि किसी को देखना हो तो इस रेलवे स्टेशन के पास आ जाता. अगर रिश्तों को बुत न बना कर साबुत रखना है तो संकट आते रहने चाहिए.

प्लेटफौर्म पर इस समय तिल रखने जगह न थीं. इंतजार की घड़ियां बडी़ मुश्किल से कटती हैं. यह ट्रेन अपने निर्धारित समय से 12 घंटे लेट आई थी, आखिर दुर्घटनाग्रस्त जो थी. एकदो बोगियां तो इतनी छतिग्रस्त हो गई थीं कि उन्हें बाकियों से काट कर अलग करना पडा़ था. उन में से साधारण घायलों को अन्य बोगियों में समायोजित कर दिया गया था. ज्यादा गंभीर पास के अस्पतालों में भरती थे. वैसे दुर्घटनाग्रस्त इलाके के पास का सब से बडा़ शहर यही था और रेलवे का बडा़ अस्पताल भी यहीं था.

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