एक हलचल भरे महानगर के शांत कोनों में, शहर की रोशनी की चमक और जीवन की निरंतर खलबली से दूर एक विशाल गोदाम सा दिखने वाला क्षेत्र था. दूर से ही सुरक्षा बाड़ा शुरू हो जाता था और बड़ेबड़े अक्षरों में उस के बाहर लिखा था, "प्रवेश वर्जित". सिर्फ अंदर काम करने वाले वैज्ञानिकों और अभियांत्रिकों को ही पता था कि इस विशाल गोदाम के भीतर क्या चल रहा है.

आकांक्षी नाम की एक युवती अंतरिक्ष वैज्ञानिक का पदभार यहां संभाले हुए थी. उस का दिल अंतरिक्ष को समर्पित हो चुका था, और आत्मा ब्रह्मांड के अज्ञात रहस्यों से घिर गई थी. उस के सपने उसे पृथ्वी की सीमाओं से बहुत दूर ले गए थे. अपनी हर सांस के साथ, वह चंद्रमा की मिट्टी की सुगंध लेती थी और जब चाहे तब आंखें मूंद कर अंतरिक्ष की भारहीनता को महसूस करती थी.

आकांक्षी की यात्रा गरमियों की रात में, चमकते सितारों से सजे आकाश के नीचे शुरू हुई. एक बच्ची के रूप में, वह अकसर अपने अति साधारण से दिखने वाले घर की छत पर लेटी रहती थी, उस की आंखें ऊपर प्रकाश के टिमटिमाते बिंदुओं पर टिकी रहती थीं. उस के मातापिता उसे घर के अंदर आने के लिए धीरे से डांटते थे, लेकिन कोई भी चीज उसे चमकते सितारों के दिव्य चमत्कार से दूर नहीं कर सकती थी मानो अंतरिक्ष उसे बुला रहा हो.

साल बीतते गए और उस का जुनून और भी मजबूत होता गया. अपने विरुद्ध खड़ी देहाती बाधाओं के बावजूद जहां गांव वाले स्त्री शिक्षा के खिलाफ थे, आकांक्षी ने शहर में कालेज, बाद में यूनिवर्सिटी और फिर देश के प्रतिष्ठित अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष किया. लेकिन अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में उस का प्रवेश खुले दिल से नहीं किया गया. अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र भी पुरुष प्रधान क्षेत्र था. सैकड़ों विभागों में हजारों तकनीशियन, इंजीनियर और वैज्ञानिक कार्यरत थे, जिन में से पुरुष बहुसंख्यक थे. अपने क्षेत्र की कुछ महिलाओं में से वह एक थी. पहले तो उसे दुर्गम बाधा की तरह लगा, लेकिन जब उस ने अपने पुरुष सहकर्मियों का मित्रतापूर्ण आचरण देखा, तो धीरेधीरे अपने नए माहौल में पूरी तरह से घुलमिल गई और बेफिक्र हो गई.

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