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स्थानांतरण के बाद जब हम नई जगह आए तो पिछली भूलीभटकी कई बातें अकसर याद आतीं. कुछ दिन तो नए घर में व्यवस्थित होने में ही लग गए और कुछ दिन पड़ोसियों से जानपहचान करने में. धीरेधीरे कई नए चेहरे सामने चले आए, जिन से हमें एक नया संबंध स्थापित करना था.

मेरे पति बैंक में प्रबंधक हैं, जिस वजह से उन का पाला अधिकतर व्यापारियों से ही पड़ता. अभी महीना भर ही हुआ था कि एक शाम हमारे घर में एक युवा दंपती आए और इतने स्नेह से मिले, मानो बहुत पुरानी जानपहचान हो.

‘‘नई जगह पर दिल लग गया न, भाभीजी? हम ने तो कई बार सुनीलजी से कहा कि आप को ले कर हमारे घर आएं. आप आइए न कभी, हमारे साथ भी थोड़ा सा समय गुजारिए.’’ युवती की आवाज में बेहद मिठास थी, जो कि मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही थी. इतने प्यार से ‘भाभीभाभी’ की रट तो कभी मेरे देवर ने भी नहीं लगाई थी.

मेरे पति अभी बैंक से आए नहीं थे, सो मुझे ही औपचारिकता निभानी पड़ रही थी. नई जगह थी, सो, सतर्कता भी आवश्यक थी. शायद? उन्होंने मेरे चेहरे की असमंजसता पढ़ ली थी.

युवक बोला, ‘‘मुझे सुनीलजी से कुछ विचारविमर्श करना था. बैंक में तो समय नहीं होता न उन के पास, इसलिए सोचा, घर पर ही क्यों न मिल लें. इसी बहाने आप के दर्शन भी हो जाएंगे.’’

‘‘ओह,’’ उन का आशय समझते ही मेरे चेहरे पर अनायास ही एक बनावटी मुसकान चली आई.

शीतल पेय लेने जब मैं भीतर जाने लगी तो वह युवती भी साथ ही चली आई, ‘‘मैं आप की मदद करूं?’’ मेरे चेहरे पर खीझ उभर आई कि अपना काम हो तो लोग किस सीमा तक झुक जाते हैं.

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