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मेरे सामने बैठ कर बिलखबिलख कर रोती लक्ष्मी को देख कर मेरे मन में उस के लिए तरस आई. “इस लड़के के लिए मैं ने कितनी मेहनत की, मां जी, आप को मालूम है न. इतने सालों में मैं ने उसे एक बार भी नहीं डांटा, एक अभद्र शब्द नहीं बोला, कभी उस पर हाथ नहीं उठाया. जब भी उस के पिता उस पर चिल्लाते थे, मैं उस के बचाव में आ जाती थी. मगर इस लड़के ने मुझ से सारी बात छिपाई. स्कूल अध्यापिका के किसी और बच्चे द्वारा मुझे बुला कर कहने पर ही मुझे पता चला कि यह लड़का आवारा निकला. बदमाश बच्चों के साथ मिल कर रोजाना स्कूल से छुट्टी ले कर कहीं घूमताफिरता रहता है.” लक्ष्मी की आंखों से पानी गंगा की तरह बह रहा था.

मैं ने उसे शांत करने की कोशिश की. “अब बस भी करो, लक्ष्मी. अब रोने से क्या फायदा जो हो गया सो हो गया. अब उस के बारे में बात करने से कोई लाभ नहीं. अपने बेटे को पढ़ाई की आवश्यकता के बारे में समझाना. हो सके तो उसे मेरे पास भेजो, मैं भी बात करूंगी और मेरे पति से भी उस से बात करने के लिए कहूंगी.

लक्ष्मी आंसू पोंछ कर उठी और झिझकते हुए कहा, “एक और बात मां जी, मेरे बेटे ने स्कूल फीस के लिए जो भी पैसे मैं ने उसे दिए, उस सब को उन नालायक दोस्तों के ऊपर खर्च कर डाला. अब स्कूल वाले सारी की सारी फीस एकसाथ भरने के लिए कहते हैं, नहीं तो वे मेरे बेटे को स्कूल में प्रवेश करने नहीं देंगे. मेरा पूरा भरोसा इस लड़के पर टिका हुआ था, मां जी. मेरा सपना था कि यह पढ़लिख कर कुछ बन जाए, तो मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी.”

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