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पैसे देखते ही लक्ष्मी का चेहरा खुश हो गया. “मां जी, आप सच में बहुत अच्छी हैं. आप को ही औलाद का महत्त्व मालूम है. आप मेरे बेटे को सही राह पर लाने के लिए तैयार हैं, ऊपर से आप ने पैसे भी दिए, शुक्रिया मां जी. हर महीने मेरी तनख्वाह से 5 सौ रुपए काट लीजिएगा.”

मैं ने कुछ नहीं बोला. लक्ष्मी की प्रशंसा में जो बात छिपी है, उसे मैं समझ सकती थी. मैं इतनी बेवकूफ नहीं हूं. मुझे पता था कि लक्ष्मी क्या कहना चाहती है.

‘आप को ही औलाद का महत्त्व मालूम है’- हमारी शादी होने के 4 साल में ही हमें पता चला कि हमें बच्चा नहीं होगा. हम दोनों ने अपनेअपने कार्यक्षेत्र में हमारी संतानहीनता होने की वजह से बहुत ताने सुने थे. हम दोनों उन सब को पार कर आ गए हैं कि अब जो भी कुछ कहे, उस से हमें कोई फर्क ही नहीं पड़ता.

लक्ष्मी हमारे घर में पिछले 5 साल से काम कर रही है, बहुत मेहनती है. अकसर पैसे मांगना उस की आदत है. मगर घरघर की यही कहानी है. इसलिए हम ने इस मामले को बस यों ही छोड़ दिया.

जिस लड़के के बारे में लक्ष्मी रो रही थी, उसे मैं ने दोचार बार देखा है और उस से बात भी की है. मुझे यह भी मालूम था कि जिस लड़के को लक्ष्मी ने अपनी औकात से ज्यादा लाड़प्यार दिया, वह अव्वल नंबर का मवाली और बदतमीज था. मेरे पति को वह बिलकुल पसंद नहीं था. उन्होंने संक्षिप्त में कह दिया कि वह लड़का सही नहीं है.

मैं ने भी दफ्तर आतेजाते समय उसे अपने नालायक दोस्तों के साथ देखा था. आज के जमाने के युवक जैसा हेयरस्टाइल और बीड़ीसिगरेट हाथ में ले कर खड़े आवारा लड़कों के साथ मैं ने उसे देखा था. मुझे देखते ही वह किसी लड़के के पीछे छिप जाता था. इस के बारे में मैं ने लक्ष्मी से ज़िक्र भी किया था.

‘मां जी, आप ठीक कह रही हैं. उस के कई सारे दोस्त लोग ठीक नहीं हैं, मगर मेरा बेटा कोई गलत काम नहीं करेगा, मां जी.’ लक्ष्मी अपने बेटे की तरफदारी करती थी. उस के बाद मैं ने उस लड़के के बारे में बोलना बंद कर दिया.

अब भुगत रही है लक्ष्मी. अगले दिन ही निर्मल को अपने साथ ले कर आई.

आज की पीढ़ी का नमूना जैसे दिख रहा था वह. उस के बाल ही बता रहे थे कि वह किस किस्म का लड़का था. चुस्त जींस और उस से भी चुस्त शर्ट आदि पहन कर मेरे सामने खड़ा था. मेरी तरफ देख रही उस की आंखों में मेरे लिए क्रोध साफ नजर आ रहा था. देखने में ठीकठाक था, मगर अफसोस चालचलन ठीक नहीं था.

“बोलिए मां जी, मैं काम करने जाती हूं,” कह कर लक्षमी अंदर चली गई.

मैं निर्मल की आंखों में आंखे डाल कर उसे गौर से देख रही थी. वह मुझ से नजरें चुरा कर नीचे देख रहा था. कुछ देर बाद अपना चेहरा इधरउधर पलट रहा था. उस की हरकतें साफ बता रही थीं कि वह मुझ से बात नहीं करना चाहता था.

“तुम्हारी मां ने कहा, तुम ने स्कूल फीस का सारा पैसा ऐसे ही उड़ा दिया?” मैं ने पूछा.

कोई जवाब नहीं.

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