“तुम्हारी उम्र में तुम्हारा सारा ध्यान पढ़ाई में होना चाहिए. ध्यान भड़क गया तो तुम्हारा भविष्य खराब हो जाएगा.”
मुझे देख कर अपना सिर हिलाया. मुझे पता नहीं था कि इस का मैं क्या मतलब निकालूं.
“तुम्हें पता है, तुम्हारे मां और बाप कितनी मेहनत कर के तुम्हें पढ़ालिखा आदमी बनाने की कोशिश कर रहे हैं?”
उस ने सिर हिलाया जिस का मतलब हां ही होगा, ऐसा मैं ने समझा.
उसे यहां रह कर पढ़ाई के बारे में भाषण सुनने में जरा भी रुचि नहीं, उसे देखते ही मुझे पता चल गया.
“अपनी फीस के पैसों को तुम ने अपने दोस्तों को क्यों दिया?” मैं ने सीधा पूछ ही डाला.
उस का चेहरा गुस्से में लाल हो गया, “उस की मां की तबीयत खराब थी, दवाई खरीदने के लिए पैसे मांगा था, इसलिए मैं ने दिया इंसानियत के नाते.”
‘इंसानियत’ कह रहा है, लगता है इतनी भी मंदबुद्धि नहीं. मुझे साफ नजर आ रहा था कि वह झूठ बोल रहा था और मुझे यह भी लगा कि इस के आगे उस से बात करने से मेरी मर्यादा को ही हानि पहुंचेगी, इसलिए मैं ने उस से, “अच्छा चलो, इंसानियत के तुम अकेले ठेकेदार नहीं हो और भी लोग हैं इस दुनिया में बड़ा काम करने के लिए. तुम अपने काम से काम रखो” कह कर उस से चलने को कहा.
चलते समय जो जूते वह पहने हुए थे, उसे देख कर मैं हैरान हो गई थी, उस की कीमत 2 हजार रुपए से कम नहीं हो सकती. मगर हमारे देश में नकली चीजों की कमी नहीं है, 2 हजार रुपए के जूते के नकली 2 सौ रुपए में मिल सकते हैं. मिलने वाली जगह अलग ही होगी.