‘‘अरे, आंटी आप, आइएआइए.’’
‘‘मुझे पता चला कि तुम वापस आ गई हो इस घर में. सोचा, मिल आऊं.’’
मेरी मां की उम्र की हैं आंटी. उन्हें आंटी न कहती तो क्या कहती.
‘‘अरे, मिसेज शर्मा कहो. आंटी क्यों कह रही हो. हमउम्र ही तो हैं हम.’’
पहला धक्का लगा था मुझे. जवाब कुछ होता तो देती न.
‘‘हां हां, क्यों नहीं...आइए, भीतर आइए.’’
‘‘नहीं ममता, मैं यह पूछने आई थी कि तुम्हारी बाई आएगी तो पूछना मेरे घर में काम करेगी?’’
‘‘अरे, आइए भी न. थोड़ी देर तो बैठिए. बहुत सुंदर लग रही हैं आप. आज भी वैसी ही हैं जैसी 15 साल पहले थीं.’’
‘‘अच्छा, क्या तुम्हें आज भी वैसी ही लग रही हूं. शर्माजी तो मुझ से बात ही नहीं करते. तुम्हें पता है इन्होंने एक लड़की रखी हुई है. अभी कुछ महीने पहले ही लड़की पैदा की है इन्होंने. कहते हैं आदमी हूं नामर्द थोड़े हूं. 4 बहनें रहती हैं पीछे कालोनी में, वहीं जाते हैं. चारों के साथ इन का चक्कर है. इस उम्र में मेरी मिट्टी खराब कर दी इस आदमी ने. महल्ले में कोई मुझ से बात नहीं करता.’’
रोने लगीं शर्मा आंटी. तब तरस आने लगा मुझे. सच क्या है या क्या हो सकता है, जरा सा कुरेदूं तो सही. हाथ पकड़ कर बिठा लिया मैं ने. पानी पिलाया, चाय के लिए पूछा तो वे आंखें पोंछने लगीं.
‘‘छोडि़ए शर्माजी की बातें. आप अपने बच्चों का बताइए. अब तो पोतेपोतियां भी जवान हो गए होंगे न. क्या करते हैं?’’
‘‘पोती की शादी मैं ने अभी 2 महीने पहले ही की है. पूरे 5 लाख का हीरे का सेट दिया है विदाई में. मुझे तो सोसाइटी मेें इज्जत रखनी है न. इन्हें तो पता नहीं क्या हो गया है. जवानी में रंगीले थे तब की बात और थी. मैं अपनी सहेलियों के साथ मसूरी निकल जाया करती थी और ये अपने दोस्तों के साथ नेपाल या श्रीनगर. वहां की लड़कियां बहुत सुंदर होती हैं. 15-20 दिन खूब मौज कर के लौटते थे. चलो, हो गया स्वाद, चस्का पूरा. तब जवानी थी, पैसा भी था और शौक भी था. मैं मना नहीं करती थी. मुझे ताश का शौक था, अच्छाखासा कमा लेती थी मैं भी. एकदूसरे का शौक कभी नहीं काटा हम ने.’’
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन