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आवाज में वही मधुरता, जैसे कुछ हुआ ही नहीं. काम है, करना तो पड़ेगा, कोई लिहाज नहीं है. दुखी हो तो हो जाओ, किसे पड़ी है. बिजनैस देना है तो प्यार से बोलना पड़ेगा. छवि अब भी फोन पर बात करती तो उसी मिठास के साथ कि मानो कुछ हुआ ही नहीं. वैसे कुछ हुआ भी नहीं. बस, एक धुंधली तसवीर को डैस्क से ड्रौअर के नीचे वाले हिस्से में रखा ही तो है. अब उस की औफिस डैस्क पर केवल एक कंप्यूटर, एक पैनहोल्डर और उस के पसंदीदा गुलाबी कप में अलगअलग रंग के हाइलाइटर्स रखे थे. 2 हफ्ते पहले तक उस की डैस्क की शान थी ब्रांच मैनेजर मिस्टर दीपक से बैस्ट एंप्लौयी की ट्रौफी लेते हुए फोटो. कैसे बड़े भाई की तरह उस के सिर पर हाथ रख वे उसे आगे बढ़ने को प्रेरित कर रहे थे.

आज उस ने फोटो को नीचे ड्रौअर में रख दिया. अब वह ड्रौअर के निचले हिस्से को बंद ही रखती. वह फोटो उस के लिए बहुत माने रखती थी. इस कंपनी में पिछले 6 महीने से छवि सभी एंप्लौयीज के लिए रोलमौडल थी और दीपक सर के लिए एक मिसाल. छवि ने घड़ी देखी, 5 बजने में अब भी 25 मिनट बाकी थे. अगर उस के पास कोई अदृश्य ताकत होती तो समय की इस बाधा को हाथ से पकड़ कर पूरा कर देती. समय चूंकि अपनी गति से धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था, छवि ने अपने चेहरे पर हाथ रख, आंखों को ढक अपनी विवशता को कुछ कम किया.

अभी तो उसे लौगआउट करने से पहले रीजनल मैनेजर विनोद को दिनभर की रिपोर्टिंग करनी थी, यही सोच कर उस का मन रोने को कर रहा था. अगर उस ने फोन नहीं किया तो कभी भी उन का फोन आ सकता है. औफिस का काम औफिस में ही खत्म हो जाए तो अच्छा है. घर तक ले जाने की न तो उस की ताकत थी और न ही मंशा. यह आखिरी काम खत्म कर छवि एक पंख के कबूतर की तरह अपनी कंपनी के वन बैडरूम फ्लैट में आ गई. फ्लैट की औफव्हाइट दीवारों ने उस का स्वागत उसी तरह किया जैसे उस ने किसी अनजान पड़ोसी को गुडमौर्निंग कहा हो. फ्लैट में कंपनी ने उसे बेसिक मगर ब्रैंडेड फर्नीचर मुहैया करवा रखे थे. कभी उसे लगता घर भी औफिस का ही एक हिस्सा है और वह कभी घर आती ही नहीं. सच भी तो है, पिछले 6 महीने में वह एक बार भी घर नहीं गई थी.

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