यह मेरी नजरों का धोखा था या मैं वाकई निराश होता जा रहा था. क्या करूं, उम्र भी तो हो चली थी. 38 वर्ष की आयु तक पहुंचते हुए मैं ने अच्छीखासी प्रोफैशनल उन्नति प्राप्ति कर ली थी. कई प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेते हुए मैं ने बैंक में प्रोबेशनरी औफिसर का पद प्राप्त कर लिया. अब एक प्रतिष्ठित सरकारी बैंक में ब्रांच प्रबंधक के तौर पर पदासीन था. अपना घर भी बना लिया और बड़ी गाड़ी भी ले ली थी. अच्छीखासी शक्लसूरत भी थी, घरपरिवार भी संपन्न था पर शादी नहीं हुई. सभी पूछते, कब सुना रहे हैं खुशखबरी, साहब? क्या कहता? कोई उत्तर नहीं, कोई कारण भी नजर नहीं आता था. पता नहीं बात क्यों नहीं बनी थी अब तक. हंस कर टाल जाता कि जब सलमान खान शादी करेगा, तब मैं भी खुशखबरी सुना दूंगा. पर अब लगने लगा था कि शायद मैं सलमान खान को पीछे छोड़ दूंगा.

कुछ दिनों से देख रहा था कि सामने वाली बिल्ंिडग में रहने वाली सुंदरसुकोमल लड़की मुझे देख मुसकराती थी. आखिर रोजरोज तो गलतफहमी नहीं हो सकती थी.

एक दिन दफ्तर जाने के लिए जब नीचे उतरा तब भी देखा था कि वह अपनी बालकनी में खड़ी मुझे देख रही थी. अगले दिन भी और उस के अगले दिन भी. हिरनी सी बड़ी, कजरारी आंखों में मृदुल सौम्यता, कोमल कपोलों पर छिटका गुलाबी रंग और रसभरे होंठों पर खेलती हलकी मुसकान, इतना लावण्य किसी की दृष्टि से छिप सकता था भला. जाहिर था, मैं ने भी देखा. एक और खास बात होती है दृष्टि में, चाहे कोई हमारी पीठ पर अपनी नजरें गड़ाए हुए हो, हमें पता चल जाता है. हम घूम कर उस देखने वाले को देख लेते हैं. यह प्रकृति का कैसा अनूठा रहस्य है, इसे मैं आज तक समझ नहीं पाया. तभी तो तीसरी मंजिल से मुझे देखती उस सुंदरी तक मेरी दृष्टि खुद ही पहुंच गई थी.

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