दंग रह गई. साथ ही यह सोच कर सुखद एहसास से भी भर गई कि इतनी बड़ी कंपनी की वह सर्वेसर्वा है, जिस में उस के नीचे सैकड़ों लोग काम करते हैं और उसे सलाम ठोंकते हैं. यों तो दीपा के स्वभाव को वह शुरू से ही जानती है. एक बार वह जिस काम को करने की ठान लेती उसे पूरा कर के ही दम लेती थी. उस के तुरंत निर्णय लेने की क्षमता की वह हमेशा कायल रही है पर एक दिन वह इतनी ऊंचाई तक पहुंच जाएगी, उस ने कल्पना भी नहीं की थी. दीपा के गंभीर और रोबीले व्यक्तित्व को देख कर सहसा निधि को विश्वास ही नहीं हुआ कि यह कालेज के दिनों की वही चुलबुली दीपा है जिस की चुहल से खामोशी भी मुसकराने लगती थी. औफिस के कैबिन में बैठी निधि अतीत में खो गई.
दीपा को उस से बेहतर कोई नहीं जानता. जिंदगी उस के लिए एक खूबसूरत नगमे की तरह थी जिस के हरएक पल को वह भरपूर मौजमस्ती और जिंदादिली के साथ जीती थी. निधि उस की क्लासमेट, रूममेट, सखी और इस से भी कहीं अधिक बहन की तरह थी. निधि के मस्तिष्क के किसी कोने में वे गुजरे लमहे झांकने लगे थे जो कभी उन की खट्टी- मीठी सुखद अनुभूतियों के साक्षी रहे थे.
वह दिल्ली की कुहरे भरी एक ठिठुरती हुई शाम थी. लगातार 2 दिनों से सूरज के दर्शन न होने से ठंड बहुत बढ़ गई थी. तीर की तरह चुभती बर्फीली हवाओं से बचने के लिए निधि ने खिड़की और दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर लिए थे और पूरे कपड़े पहने ही बिस्तर में दुबक कर पढ़ने में मशगूल हो गई थी. बढ़ती ठंड की वजह से कालेज बंद चल रहे थे और कुछ दिनों के बाद ऐग्जाम होने थे इसलिए वह कमरे में बंद रह कर ज्यादातर वक्त पढ़ाई में गुजारती थी. निधि ने नजर उठा कर दीवार घड़ी की ओर देखा. रात के 8 बज रहे थे. महानगर के लिहाज से तो अभी शाम ही थी फिर भी सामान्य दिनों में बाहर दौड़ताभागता शहर गहरी खामोशी में की चादर ओढ़ चुका था.
खराब मौसम होने के बावजूद दीपा अभी तक नहीं आई थी. उस के मोबाइल पर निधि कई बार ट्राई कर चुकी थी पर नेटवर्क बिजी होने से एक बार भी बात नहीं हो सकी. उस के बेतरतीब रुटीन से वह आजिज आ चुकी थी. कुछ नहीं हो सकता इस लापरवाह लड़की का. साहबजादी किसी डिस्को में थिरक रही होगी या…क्या फायदा उस के बारे में कुछ भी सोचने से. वह भुनभुनाने लगी. लाख समझाओ पर वह करेगी वही जो उस का मन चाहेगा. निधि बिखरी सोचों को एकजुट करने की कोशिश कर रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई.
‘कौन?’ उस ने बिस्तर में बैठेबैठे ही पूछा.
‘दीपा,’ बाहर से आवाज आई.
‘यह कोई वक्त है आने का?’ दरवाजा खोल कर निधि बरस पड़ी उस पर.
‘रिलैक्स स्वीटहार्ट. तू गुस्से में इतनी हसीन लगती है कि मैं यदि तेरा बौयफ्रैंड होती तो मुकेश का गाया हुआ गीत, ‘तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं…’ गाती रहती.’
निधि की हंसी छूट गई. वह और दीपा एक ही कालेज में साथसाथ पढ़ती थीं. कालेज में निधि का पहला परिचय दीपा से ही हुआ था, जो जल्दी ही गहरी दोस्ती में तबदील हो गया था. इस की खास वजह उन का उत्तर प्रदेश के पड़ोसी शहरों का होना भी था. उन्होंने कालेज के पास ही एक किराए का कमरा ले लिया था. दीपा रईस घराने से संबंध रखती स्वच्छंद विचारों की युवती थी और निधि मध्यवर्गीय परिवार के संस्कारों में पलीबढ़ी सरल स्वभाव की. फिर भी दोनों में खूब पटती थी. ‘निधि, तू देवेश को तो जानती है न?’ दीपा ने उस की रजाई में घुस कर पूछा.
‘वही न जो कौफी हाउस में तुझ से चिपकचिपक कर बातें कर रहा था,’ निधि ने किताब से नजरें हटा कर दीपा की ओर देखा, ‘तेरा बैस्ट फ्रैंड जो कालेज में अकसर तेरे आसपास मंडराता दिखाई देता है.’
‘बैस्ट फ्रैंड नहीं, बौयफ्रैंड. मेरी बैस्ट फ्रैंड तो सिर्फ तू है.’
‘बसबस, साफसाफ बोल, कहना क्या चाहती है?’
‘आज मैं उस के ही साथ थी. तुझे पता है, आज वह मेरे पीछे ही पड़ गया कि आज की हसीन शाम मेरे साथ गुलजार करेगा.’
‘तू यहां पढ़ने आई है या मौजमस्ती करने?’
‘दोनों,’ दीपा चहकती हुई बोली, ‘याद है, उस दिन क्लास में अनमोल सर कह रहे थे कि जीवन के सब से अनमोल क्षण वे होते हैं जो इस समय हम लोग जी रहे हैं, यानी कि स्टूडैंट लाइफ. यह बेफिक्री और खुमारी का हसीन दौर होता है. मन के आंगन में कोई धीरे से उतर कर एक ऐसी अनोखी कहानी लिख देता है जिस के पात्र जीवनभर साथ निभाते हैं. ऐसीऐसी सुखद अनुभूतियां होती हैं इस दौर में जिन्हें वक्त बीतने के साथ हम हर पल महसूस करते हैं. मैं इस खूबसूरत वक्त के हर लमहे को जी भर कर जी लेना चाहती हूं.’
निधि खामोशी से उस का चेहरा देखती रही. ‘एक बात बता यार,’ निधि के हाथ को अपने हाथ में ले कर दीपा शोखी से बोली, ‘देवेश मुझ से अकेले में मिलने की जिद कर रहा है. तेरी क्या राय है इस बारे में?’
‘तेरे दिमाग में कोई सीधी बात क्यों नहीं आती है?’
‘मैं ने तेरी राय पूछी है.’
‘मैं अपनी राय ही दे रही हूं,’ वह कुढ़ कर बोली, ‘घर से इतनी दूर मांबाप ने हमें पढ़ने को भेजा है. उन्होंने हम से जो अपेक्षाएं संजो रखी हैं, कभी उन के बारे में भी सोचने का वक्त निकाल. बेहतर है ऐसी बेकार की बातों में न पड़ कर पढ़ाई में मन लगा.’
‘ओके बाबा. थैंक्स फौर मौरल एडवाइज.’
‘निधि, गोलचा टाकीज में तेरे फेवरेट हीरो आमिर खान की फिल्म लगी है,’ एक दिन दीपा बोली, ‘देख कर आ न.’
‘मुझे नहीं देखनी.’
‘प्लीज,’ उस ने खुशामद करते हुए निधि के हाथ में टिकट थमा दिया.
‘एक टिकट,’ निधि ने उस की ओर आश्चर्य से देखा, ‘तू चाहती है मैं अकेली जाऊं फिल्म देखने?’
‘हां,’ दीपा मुसकराते हुए बोली.
‘और तू?’ निधि ने आश्चर्य से कहा.
‘मैं ने देवेश को यहां बुलाया है.’ यह सुन कर निधि सिर पकड़ कर बैठ गई, ‘मतलब, तू ने उस से अकेले में मिलने का फुलपू्रफ प्लान तैयार किया है. जानती है कितना खतरनाक हो सकता है तेरा यह आइडिया.’
‘तू तो बेवजह ही बात को खींचने लगती है.’ पसंदीदा अभिनेता की फिल्म होने के बावजूद निधि का मन फिल्म देखने में नहीं लगा. पूरे 3 घंटे अजीब सी बेचैनी उस के दिमाग में रेंगती रही थी. वह वापस आई तो दीपा किताब लिए कोई रोमांटिक गीत गुनगुना रही थी. उस की आंखों में तृप्ति के भाव तैरते देख वह समझ गई कि दीपा उस वर्जित फल का स्वाद ले चुकी है, जिस के बारे में वह शादी से पहले सोच भी नहीं सकती.
‘फिल्म कैसी लगी?’ दीपा ने उस की ओर देख कर पूछा.
‘तेरी मुलाकात कैसी रही?’ कोई उत्तर देने के बजाय उस ने सवाल उछाल दिया.
‘मार्वलस,’ अंगड़ाई लेती हुई दीपा एक आंख दबा कर बोली.
‘इतनी नादान तो मैं भी नहीं हूं कि एकांत में मिलने का अर्थ न समझ सकूं,’ निधि गंभीरता से बोली, ‘पर इस के दूरगामी परिणाम कितने वीभत्स हो सकते हैं, समझने की कोशिश कर. तरबूज चाकू पर गिरे या चाकू तरबूज पर, दोनों स्थितियों में कटता तरबूज ही है. लाख दागदार होने के बावजूद पुरुष का दामन पाकसाफ रहता है और कुछ ऊंचनीच हो जाने पर जिल्लत का ठीकरा औरत के सिर ही फूटता है.’ ‘जमाना कहां से कहां पहुंच गया. आज नारी हर ओर पुरुषों द्वारा स्थापित आर्थिक, मानसिक और दैहिक बंधनों को तोड़ कर स्वतंत्रता के कीर्तिमान रच रही है और तू अभी तक उन्हीं घिसीपिटी मान्यताओं में जी रही है.’ ‘दुनिया ने चाहे कितनी भी तरक्की कर ली हो पर औरत की स्थिति आज भी दोयम दरजे की है. पूरब हो चाहे पश्चिम, हर जगह एकदो अपवाद छोड़ कर पुरुष कैसा भी हो पर बीवी वह पाकसाफ ही चाहता है,’ निधि ने दीपा को समझाने की कोशिश की, ‘बेशक तू उस समाज से ताल्लुक रखती है जहां खुलापन आम बात है पर हमारे देश का अभी इतना नैतिक पतन नहीं हुआ कि मांबाप शादी से पहले बेटी के शारीरिक संबंध स्वीकार कर सकें. ‘हो सकता है, अभी मेरी बातें तेरी समझ से परे हों पर जब तक तू समझेगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.’
‘माई फुट,’ दीपा पैर पटक कर बोली, ‘मैं अपनी जिंदगी किसी और की मरजी से क्यों जीऊं? मैं उन में से नहीं हूं जो किसी भी ऐरेगैरे के पीछे आंख बंद किए चलती रहती हैं. अपनी मंजिल खुद तय करने और लक्ष्य तक अकेले ही पहुंचने का दमखम है मुझ में. शादी और पति को परमेश्वर मानने जैसे वाहियात खयालों के बारे में सोचने की मूर्खता वे करती हैं जिन्हें किसी के सहारे की आवश्यकता होती है. मैं तो खुद कुआं खोद कर पानी पीने में यकीन रखती हूं.’
इतनी विषमताओं के बावजूद निधि को दीपा से कोई शिकायत नहीं थी. हर व्यक्ति के जीने का ढंग अलगअलग होता है. दीपा बिंदास जीवन शैली के पक्ष में थी और निधि इस के विरोध में. ये एक वैचारिक मतभेद था जिस ने उन के निजी जीवन को कभी प्रभावित नहीं किया. फाइनल इयर की परीक्षा के बाद निधि के मातापिता ने उस की शादी तय कर दी. उस की ससुराल तो लखनऊ में थी पर उस का पति दीपक दिल्ली की एक मल्टी- नैशनल कंपनी में किसी अच्छे ओहदे पर कार्यरत था. सगाई से ले कर शादी तक के हर कार्यक्रम में दीपा उस के साथ रही थी. दिल्ली में उस ने निधि और दीपक को न केवल शानदार पार्टी दी थी बल्कि अपने खर्चे पर उन्हें हनीमून के लिए गोआ भी भेजा था. निधि ने बहुत मना किया था पर उस की जिद के आगे उस की एक न चली. एक अच्छी दोस्त के साथसाथ बहन का भी फर्ज अदा किया था दीपा ने.
शादी के कुछेक महीनों तक तो दीपा निधि के संपर्क में रही फिर अचानक उस का आनाजाना बंद हो गया. निधि ने कई बार उस को मोबाइल पर फोन भी किया पर हर बार स्विच औफ मिला. वीकएंड में 1-2 बार दीपक के साथ निधि ने दीपा की खोजखबर भी ली पर वह कहीं नहीं मिली. फिर व्यस्तता और समय बीतने के साथ धीरेधीरे उस के दिमाग में बसी दीपा की तसवीर धुंधली पड़ती गई. आज जब दीपा अपने कैबिन में निधि से मिली तो गुजरे लमहों की खुशबू से वातावरण महक उठा. इतना ऊंचा ओहदा होने और एक लंबा अरसा बीतने के बावजूद दीपा की आत्मीयता में कोई कमी नहीं आई थी. पल भर को निधि को लगा कि उस के सामने कंपनी की मैनेजिंग डायरैक्टर नहीं बल्कि कालेज के दिनों की खिलंदड़ दीपा खड़ी है. बातचीत के बीच दीपा ने विनम्रता के साथ कहा कि काम की व्यस्तता के चलते फिलहाल 2-4 दिन तो दम मारने की भी फुरसत नहीं मिलेगी. अगले संडे को घर में बैठ कर इत्मीनान से बातें होंगी.
निधि औफिस से लौट कर आई तो बेहद प्रफुल्लित थी. वैसे शाम को घर आतेआते काम के बोझ और बस की धक्कामुक्की में वह थक कर चूर हो जाती थी पर आज वह जैसे हवा में उड़ती आई थी. संडे की सुबह दीपा आई. निधि को बहुत खुशी हुई.
‘‘दीपक के क्या हालचाल हैं?’’ बैठते हुए दीपा ने पूछा.
‘‘अच्छे हैं. 2 दिन पहले औफिस के काम से कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर गए हैं.’’
‘‘तू कैसी है?’’
‘‘मैं भी ठीक हूं. पर तुझ से मिलने के बाद बड़ी मुश्किल से कटा है 3-4 दिन का वक्त. एकएक पल बीतने के साथ तेरे बारे में जानने की उत्सुकता गहराती जा रही है. मैं आज भी हैरानपरेशान हूं कि अचानक कहां गायब हो गई थी तू?’’
‘‘मुंबई में थी मैं.’’
‘‘दिल्ली से मुंबई इतनी दूर भी नहीं है कि अपनों से मिलने न आया जा सके,’’ निधि उलाहना देती बोली, ‘‘वैसे भी संचार माध्यमों ने दुनिया को इतना छोटा कर दिया है कि धरती के दूसरे छोर से भी हालचाल लिया और दिया जा सकता है. तेरी खैरियत पाने को मैं अंधेरे में तीर मारती रही पर तू तो मेरा ठौरठिकाना जानती थी. एक बार भी याद नहीं आई मेरी?’’ दीपा खामोशी से मुसकराती रही.
‘‘मैं मरी जा रही हूं तेरे बारे में जानने को और तू है कि कुछ बोलना ही नहीं चाहती.’’
‘‘परेशान न हो…सब कुछ बता रही हूं, सुन. मैं ने जिस आटोमोबाइल कंपनी को जौइन किया था वह नईनई मार्केट में उतरी थी. मेरे देखतेदेखते थोड़े ही समय में जिस रफ्तार से वह देश की नामीगिरामी कंपनियों में शुमार की जाने लगी वह मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं था. मैं भी उसी तेजी से आगे बढ़ना चाहती थी. कंपनी का हैड औफिस मुंबई में था. वहां प्रोग्रेस के चांस अधिक थे. मेरा पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर था जिसे मैं किसी भी कीमत पर हासिल कर लेना चाहती थी. अत: किसी तरह जुगाड़ लगा कर मैं हैड औफिस पहुंचने में सफल हो गई थी.’’
‘‘कभी मुझ से मिलने भी तो आ सकती थी.’’
‘‘तू क्या समझती है मैं यहां ऐसे ही आ गई,’’ दीपा के होंठों पर रहस्य भरी मुसकान थिरकने लगी, ‘‘दीपक जिस औफिस में काम करते हैं उस की फाइनैंस डील कुछ वर्षों से मुंबई स्थित मेरी कंपनी के हैड औफिस से हो रही है. संयोग से उस वक्त यह काम मैं ही देख रही थी. याद कर दीपक अकसर मुंबई दौरे पर जाते हैं कि नहीं?’’
‘‘हां,’’ निधि मंत्रमुग्ध सी बोली.
‘‘‘मुंबई में दीपक को देख कर मैं अभिभूत हो गई थी. जल्दीजल्दी काम निबटा कर मैं उन्हें लंच के लिए अपने घर ले गई थी और कुरेदकुरेद कर तुझ से जुड़ी हर सारी जानकारी हासिल कर ली थी. मैं यह जान कर खुश थी कि तू दिल्ली में मेरी कंपनी की ब्रांच में काम करती हुई खुशहाल जिंदगी जी रही है. दीपक के जाने से पहले मैं ने उन से वादा ले लिया था कि जब तक मैं न चाहूं मुझ से मिलने की बात तुझे नहीं बताएंगे. दरअसल, मैं अचानक आ कर तुझे सरप्राइज देना चाहती थी.’’ निधि की आंखें हैरत से फैल गईं.
‘‘मुंबई से यहां आने की 2 खास वजह हैं, निधि,’’ दीपा उस की आंखों में झांकती हुई बोली, ‘‘पहली तो यह कि मैं उस दिन को आज तक नहीं भूली जब तू ने औरत की मानमर्यादा की दुहाई देते हुए यह बताने की कोशिश की थी कि औरत बेहद कमजोर और असहाय होती है. हालांकि तेरी इन बातों से न मैं उस वक्त सहमत थी और न आज. सच तो यह है कि औरत कमजोर होती ही नहीं है, कमजोरी तो दिमाग में होती है. हम जैसी मानसिकता बना लें वैसा ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है. जो ऊंचे सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने का माद्दा जिन के भीतर होता है वे चाहें तो हाथ बढ़ा कर आसमान से सितारे भी तोड़ सकते हैं. तेरे सामने मैं इस की प्रत्यक्ष गवाह हूं.
‘‘असंभव शब्द मेरे शब्दकोष में नहीं है. मुझे सख्त नफरत है उन लोगों से जो नारी को कम कर के आंकते हैं. दरअसल, इस के लिए भी पूरी तरह से नारी ही जिम्मेदार है. वह क्योंकर खुद को पुरुषों की जमापूंजी समझती है. अपने अनुभव की एक बात और बता दूं, औरत अगर चाहे तो कोई उस की ओर देखने की भी हिमाकत नहीं कर सकता. जब तक यह सचाई उस की समझ में नहीं आएगी, उस का शोषण होता रहेगा. ‘‘मेहनत, लगन और दृढ़निश्चय के बलबूते मैं सफलता की सीढि़यां चढ़ती गई. परिणाम तेरे सामने है. आज हजारों पुरुष मेरे सामने हाथ बांधे खड़े रहते हैं. ऐसेऐसे तीसमार खां जिन के सामने किसी की बोलने की जुर्रत नहीं होती, मैं ने उन्हें अपने सामने गिड़गिड़ाते देखा है. ऐसा भी नहीं है कि वे हर औरत के सामने ऐसे ही पेश आते हों. कहीं न कहीं वे अपने अहं को तुष्ट जरूर करते होंगे. पर जिस दिन औरत ने खुद को पहचान लिया, उन्हें हर हाल में अपना दृष्टिकोण बदलना पड़ेगा.
‘‘मेरा यहां आने का मकसद तुझे अपमानित करना नहीं बल्कि आईना दिखा कर सचाई से रूबरू कराना है. आगे बढ़ने के रास्ते में बेशक कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. कई झंझावात भी झेलने पड़ते हैं और जो इन सब का डट कर मुकाबला करता हुआ आगे बढ़ता जाता है वही मंजिल पर पहुंचता है. ‘‘उस दिन की तेरी वे सारी बातें हर पल जहां मुझे चुभती रही हैं वहीं कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित भी करती रही हैं. इस नाते तू मेरी गुरु हुई सो तुझे गुरुदक्षिणा भी तो देनी थी,’’ इतना बोल कर दीपा ने पर्स से एक लिफाफा निकाल कर उस के हाथों में थमा दिया, ‘‘प्लीज, इसे स्वीकार कर के मुझे ऋण से मुक्त कर दे.’’
‘‘क्या है यह?’’ चौंक कर पूछा निधि ने.
‘‘तेरा नियुक्तिपत्र. अब तू कोई साधारण कर्मचारी नहीं बल्कि इतनी बड़ी कंपनी के मैनेजिंग डायरैक्टर की प्राइवेट सेके्रटरी है.’’
‘‘दीपा…’’ इतना ही बोल पाई निधि. भावावेश में उस का गला रुंध गया था.
‘‘कमऔन यार. तू भावुक बहुत जल्दी हो जाती है,’’ दीपा हंस कर बोली, ‘‘यहां आने की दूसरी वजह भी तो सुन ले. इंसान जिंदगी में धनदौलत, मानप्रतिष्ठा सबकुछ हासिल कर सकता है पर अच्छा और सच्चा दोस्त कभीकभी ही मिलता है. जीवन में मैं ने जब जो चाहा वह पाया. आज महंगी से महंगी गाड़ी, आलीशान बंगला, लाखों का बैंकबैलेंस और ऐश्वर्य की हर चीज मौजूद है मेरे पास पर तेरी कमी हर पल महसूस हुई है मुझे. मैं यहां नईनई आई हूं, समझने में थोड़ा वक्त लगेगा. तू ये जिम्मेदारी भरा पद संभाल ले तो मेरी राह और आसान हो जाएगी.’’
‘‘तुझे समझने में भूल हो गई मुझ से,’’ निधि की पलकें भीग गईं, ‘‘तू इतना कुछ…’’
‘‘फिर शुरू हो गई,’’ दीपा आंखें तरेरती हुई बीच में बोल पड़ी, ‘‘पता है, सुबह से मैं ने कुछ भी नहीं खाया. बड़ी जोरों की भूख लगी है. अब कुछ खिलाएगीपिलाएगी भी या यों ही भूखा मार डालेगी.’’
निधि की हंसी छूट गई. ‘‘तू जरा भी नहीं बदली, दीपा. आज भी वैसी की वैसी है. पर खाना तू खाएगी तो अकेली मैं क्यों बनाऊं. तू भी साथ चल मेरे.’’
निधि, दीपा का हाथ पकड़ कर रसोई में खींच ले गई.