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अब जब मैं 75 का हो रहा हूं तो गाडिय़ां तो कैंसिल होती हैं पर वह फ्रंटियर मेल बहुत खास थी. मेरी समझ से एमए में सर्वप्रथम आना कोई बड़ी बात नहीं है. साथ ही, ऐसे भी कितने ही मिल जाएंगे जिन्होंने कभी भी दूसरे नंबर पर आना नहीं जाना. हां, आश्चर्य तो तब होता है जब ऐसा ही कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति कालेज की हाकी टीम का कप्तान रहा हो, वादविवाद की प्रतियोगिता में भी जिसे अनगिनत पुरस्कार मिले हों तथा लखपत घराने का एकमात्र उत्तराधिकारी होने के नाते जिस को पढऩेलिखने की आवश्यकता ही कभी महसूस न हुई हो.

दिनेश में ये सब गुण प्रकृति ने मानो अपना चमत्कार दिखाने के लिए भर दिए थे. विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के सारे कीर्तिमान तोड़ कर जब वह विशेष अध्ययन के लिए अमेरिका गया तो हार्वर्ड के प्रोफैसर लोग भी उस की प्रतिभा से चकित रह गए थे. कुछ ही वर्षों में डौक्टरेट की डिग्री ले कर जब वह वहीं पर प्रोफैसर नियुक्त हो गया तो मेरे जैसे उस के अनेक सहपाठियों के सीने भी गर्व से कुछ इंच अधिक ही तन गए थे.

भारत लौटने का विचार दिनेश ने लगभग छोड़ ही दिया था. आखिर आ कर करता भी क्या. अर्थशास्त्र के जिस आधुनिक पहलू पर वह शोध कर रहा था, उस का ज्ञान भारत के कुछ इनेगिने व्यक्तियों को ही था. इस के विपरीत अमेरिका, विशेष कर हार्वर्ड में, एक से एक बड़े विद्वान भरे पड़े थे जिन के सहयोग से वह भी आकाश के तारे छू सकता था. नोबेल पुरस्कार जीतने की संभावना भी शायद उस के मस्तिष्क में उन्हीं दिनों दौड़ लगाने लगी थी.

लेकिन समय ने कुछ ऐसा पलटा खाया कि एक कार दुर्घटना में उस के पिता की मृत्यु के कारण उसे भारत लौटना पड़ा. घर की व्यावसायिक स्थिति ठीक करतेकरते कुछ मास बीत गए और वह कुछ संभल ही पाया था कि कामदेव के एक तीर ने उस के रहेसहे हौसले भी पस्त कर दिए. उस का परिचय हुआ, हुआ क्या, कराया गया मंजू से, उस की होने वाली बहू के रूप में. जिस भोंदू ने जीवनभर सरस्वती के सिवा किसी और देवी का ध्यान ही न किया हो, अमेरिका जैसी पिशाचपुरी में भी जिस ने हर पल स्त्री को मांबहन के रूप में ही देखा हो, उस का मंजू जैसी अपूर्व सुंदरी के सपंर्क में आना मानो अकाल से पीडि़त भूखे को खीर मिल जाने के समान हुआ. वे घटनाएं सामने आने लगीं. न्यूजर्सी के इस अपने छोटे के मकान में वह सुगंध कहां है जो उन दिनों थी. वे घटनाएं साकार होने लगीं.

मंजू की सम्मोहन शक्ति में जकड़ कर उसे मालूम हुआ कि संसार में अर्थशास्त्र को छोड़ कर और भी शास्त्र हैं. अमेरिका का ध्यान उस ने अब छोड़ ही दिया था, उस स्थिति में जब कुछ ही दिनों में उस का विवाह होने वाला हो. एक कोमलांगी के नेत्रपाश कितने मजबूत हो सकते हैं, यह या तो तुलसीदास समझ पाए थे या मेरे मित्र दिनेश चंद्र शर्मा.

इस सब का तात्पर्य यह नहीं कि मंजू से विवाह होने के बाद अमेरिका के साथ ही दिनेश ने अपने विषय को भी तलाक दे दिया था. दिल्ली विश्वविद्यालय को उस ने गौरव प्रदान किया, वहां के अर्थशास्त्र विभाग का अध्यक्ष बन कर भारतीय आर्थिक समस्याओं पर आधारित कितने ही शोधकार्य उस ने आरंभ किए. 35 वर्ष की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते वह देश का प्रमुख अर्थशास्त्री गिना जाने लगा और अब 10 वर्षों बाद वह योजना आयोग का सदस्य था तथा सुनने में आ रहा था कि देश को आर्थिक संकट से निकालने के लिए उस को मंत्री बनाया जाने वाला है. दिल्ली में एक सुंदर बंगला, 2 कारें तथा कितने ही नौकरचाकर उस के पास थे और कभीकभी समाचारपत्रों में उस की खबरें छपने भी लगी थीं.

मैं दिनेश को उस समय से जानता हूं जब उसे नेकर के बटन तक बंद करने नहीं आते थे और उस की सदा बहने वाली नाक को पोंछने के लिए एक आया रूमाल लिए हमेशा उस के पीछे घूमती रहती थी. कालेज के अंत तक लगभग 20 वर्ष हम ने एकथ गुजारे थे, जिस के कारण एक अटूट सी घनिष्ठता हम दोनों में हो गई थी. हां, अमेरिका से लौटने के के बाद इधर मिलनाजुलना कुछ अवश्य कम हो गया था. कारण, वह था दिल्ली में और मैं मुंबई में. वैसे, पत्रव्यवहार अभी भी बदस्तूर जारी था.

उस दिन देहरादून से लौटते समय दिल्ली के स्टेशन पर पता चला कि अत्यधिक वर्षा के कारण मुंबई जाने वाली गाड़ी 6 घंटे देर से प्रस्थान करेगी. तो, सोचा कि यह अवसर दिनेश से मिलने के लिए उपयुक्त रहेगा और इस आशय से उस के घर टैलीफोन किया.

‘‘हैलो,’’ उधर से कोई बोला.

‘‘दिनेश है?’’

‘‘आप का नाम?’’

‘‘सुरेश.’’

‘‘सुरेश, कौन सुरेश?’’

‘‘सुरेश गुप्ता,’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं दिनेश का मित्र हूं.’’

‘‘अजी, आजकल तो सभी उन के मित्र बने हुए हैं,’’ उपहासयुक्त स्वर में वह बोला, ‘‘नाम, काम वगैरह जब तक नहीं मालूम हो, साहब को फोन नहीं दिया जा सकता.’’

अब मेरे झल्लाने का अवसर था. साले का अभी से यह हाल है तो आगे तो न जाने क्या हाल करेगा. ‘‘तो सुनो,’’ मैं ने भी आवाज बिगाड़ते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम सुरेश गुप्ता, वल्द मक्खन लाल, निवासी मुंबई, उम्र 45 साल, एक बीवी का पति और 2 बच्चों का बाप. काम तुम्हारे साहब से पूछना है कि वे अभी तक साइकिल चलाना सीखे कि नहीं. और कुछ?’’

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