‘अच्छे दिन’ तो बस एक मुहावरा ही है, जो सुनने में तो अच्छा लगता पर अच्छे दिन कभी आते नहीं. श्रीमतीजी का सांभरवड़ा बना कर खिलाने का अच्छे दिन का वादा प्रधानमंत्री के जैसा ही रहा.

मिस्टर पति ने उस दिन जब अपनी श्रीमती फलानीजी को यूट्यूब में सांभरवड़ा बनाने की विधि को गंभीरता के साथ देखते हुए पाया तो गदगद हो गए. सोचने लगे, आज शाम को दक्षिण भारत का यह स्वादिष्ठ व्यंजन खाने को मिलेगा. लेकिन शाम हुई और फिर रात भी गहरा गई, सांभरवड़ा का पता न चला तो पति महोदय ने पूछ लिया, ‘‘क्यों भागवान, तुम सुबह सांभरवड़ा बनाने की विधि देख रही थीं न, उस का क्या हुआ?’’

पत्नीजी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘एकदो बार और देख लूं, उस के बाद जरूर बनाऊंगी, आप की कसम.’’

पति महोदय, मजबूरी में ही सही, परम संतोषी किस्म के जीव थे. पहले भी पत्नी उन से अलगअलग पकवानों के बारे में यही कहती रहीं कि बनाने की विधि अच्छे से सम?ा लूं, फिर जल्द बना कर खिलाऊंगी. लेकिन कभी कुछ खिलाया नहीं, सिवा चावल, दाल और सब्जी के.

बहुत दिनों बाद पत्नी को एक बार फिर सांभरवड़ा बनाने की विधि देखते हुए उन्हें बड़ा अच्छा लगा. उन्हें इस बार पूरा विश्वास था कि अब पकवान खाने के मामले में अच्छे दिन आ ही जाएंगे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि अच्छे दिन, बस एक मुहावरा बन कर रह गया है. यह सुनने में अच्छा लगता है मगर अच्छे दिन आते नहीं. सो, उन की पत्नी भी सांभरवड़ा बनाने की विधि देख तो रही थीं, पर उसे बनाने का मुहूर्त अभी नहीं आया था. खैर, कभी न कभी तो जरूर बनाएगी. आखिर, पहलवान रामभरोसे की बीवी है, हिम्मत न हारेगी.

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