कालेज की वार्षिक परीक्षा शुरू हो गई थी. गणित का प्रश्नपत्र प्रिंसिपल विश्वनाथजी ने खुद तैयार किया था. परीक्षा में गणित का एक प्रश्न देख कर छात्रों का सिर चकरा गया. प्रश्न कठिन था और छात्रों की समझ में नहीं आ रहा था कि उस प्रश्न को हल कैसे किया जाए दरअसल, प्रिंसिपल सर ने जानबूझ कर प्रश्नपत्र में एक कठिन प्रश्न रख दिया था.
परीक्षा समाप्त होने के बाद कौपियां जांचने का काम शुरू हुआ. गणित की कौपियां प्रिंसिपल सर खुद जांचने लगे. उन्हें हैरानी हुई कि एक भी छात्र ने उन के दिए उस कठिन प्रश्न को छुआ तक नहीं था. उन्होंने अपने कक्ष में गणित के टीचर्स को बुलाया और प्रश्नपत्र दिखाते हुए फटकारने लगे, ‘‘आप लोग कक्षा में क्या पढ़ाते हैं इस एक प्रश्न को तो किसी छात्र ने छुआ तक नहीं है. यह प्रश्न इतना कठिन भी नहीं था कि छात्र इसे छूने की हिम्मत ही नहीं करते. जाहिर है कि इस तरह के सवाल हल करना आप लोगों ने छात्रों को सिखाया ही नहीं. कक्षा में यदि पढ़ाया ही नहीं जाएगा तो बेचारे छात्र परीक्षा में ऐसा प्रश्न पूछे जाने पर उस का उत्तर कैसे दे पाएंगे ’’ उन के स्वर में रोष मिश्रित निराशा थी. सारे टीचर्स सांस रोक कर प्रिंसिपल सर की फटकार सुनते रहे लेकिन किसी ने भी जवाब देने की हिम्मत न की. सभी टीचर्स के सिर झुके हुए थे.
अचानक एक कोने से एक स्वर उभरा, ‘‘मैं कुछ कहना चाहता हूं सर,’’ युवा टीचर रमेश खड़े हुए और विनम्रता से बोले.
‘‘क्या कहना चाहते हैं, कहिए,’’ प्रिंसिपल सर उन की तरफ देखते हुए बोले.
‘‘सर, छात्र इस कठिन सवाल को हल कैसे करते ’’ रमेश स्पष्ट शब्दों में बोले, ‘‘यह प्रश्न ही गलत है.’’
रमेश की बात सुन कर कक्षा में उपस्थित सारे प्राध्यापक सकते में आ गए. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि प्रिंसिपल सर के सामने एक टीचर उन की गलती बताने का साहस कर सकता है. हालांकि सारे टीचर्स यह बात अच्छी तरह जान गए थे कि प्रिंसिपल सर ने एक प्रश्न गलत चुना है लेकिन सच कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. प्रिंसिपल विश्वनाथ तनिक रोष भरे स्वर में बोले, ‘‘कौन कहता है कि मेरे द्वारा चुना गया प्रश्न गलत था ’’
‘‘मैं कहता हूं सर कि प्रश्न गलत था,’’ रमेश ने विनम्रता से कहा.
उन की बात सुन कर प्रिंसिपल सर चुप हो गए और कुछ सोचने लगे. फिर उन्होंने उस प्रश्न को गौर से देखा. वास्तव में वह प्रश्न ही गलत था, जिसे वह भूल से कठिन समझ रहे थे. प्रिंसिपल सर को अपनी गलती का एहसास हो गया था. वे बोले, ‘‘मुझे क्षमा करें. मैं यह भूल गया था कि प्रश्न भी गलत हो सकता है,’’ फिर थोड़ी देर सोचने के बाद वे बोले, ‘‘मुझे खुशी है, साथ ही गर्व भी कि हमारे कालेज में रमेशजी जैसे गुणी व बुद्धिमान टीचर्स भी हैं. लेकिन इस बात का दुख भी है कि अन्य सभी ने जानते हुए भी मुझे मेरी गलती बताने की हिम्मत नहीं की. चुपचाप निर्दोष होते हुए भी मेरी फटकार सुनते रहे. यह अच्छी बात नहीं है.
‘‘अगर रमेश ने मुझे सचाई बताने की कोशिश न की होती तो मैं यही सोचता कि आप लोग कक्षा में पढ़ाते ही नहीं हैं. देखिए, भूल किसी से भी हो सकती है. अगर बड़े से कोई गलती हो जाए और उस का पता छोटों को चल जाए, तो बेझिझक बड़े को उस की गलती बता देनी चाहिए. यह सोच कर चुप नहीं रह जाना चाहिए कि बड़े की गलती कैसे बताएं ’’
‘‘हमें क्षमा करें महोदय,’’ सभी टीचर्स एकसाथ बोले. साथ ही रमेश की प्रशंसा करने लगे.