लावण्य की बातें सुन कर अशोक सोच में पड़ गया. भूतप्रेत में वह विश्वास नहीं करता था. फिर भी पलभर के लिए उसे लगा कि शायद सचमुच मेजर अपनी मृत पत्नी के अपार्थिव शरीर को देखते होंगे.
‘‘अशोक, मु झे बहुत डर लगता है. मैं सोचती हूं कि शादी कर लूंगी तो डैडी का खयाल कौन रखेगा?’’
‘‘शादी के बाद उन का खयाल हम दोनों रखेंगे और कौन रखेगा?’’ अशोक ने कहा.
‘‘मैं उन्हें छोड़ कर नहीं जा
सकती अशोक.’’
‘‘आई कैन अंडरस्टैंड डियर,’’
अशोक बोला.
मेजर विवेक की स्थिति दिनोंदिन गंभीर होती जा रही थी. कभी भी, किसी भी समय वे ससुराल पहुंच जाते. विद्या की सहेलियों के यहां पहुंच जाते. बस, उन का एक ही सवाल होता, ‘‘यहां विद्या आई है क्या?’’
मेजर विवेक के बारे में लगभग सभी लोग जान गए थे, इसलिए सब बड़े धैर्य से जवाब देते, ‘आई तो थी, लेकिन थोड़ी देर पहले चली गई.’
सभी को मेजर साहब से सहानुभूति थी. लोग उन्हें बैठाते, चायनाश्ता भी कराते. फिर मेजर विवेक उठते हुए कहते, ‘चलूं, विद्या मेरा इंतजार कर रही होगी.’
अपनी नर्सरी में भी मेजर विवेक विद्या को ही ले कर बड़बड़ाते रहते. लावण्य उन के पीछेपीछे भागती रहती. मेजर विवेक की बिगड़ती स्थिति के कारण ही लावण्य और अशोक का विवाह टलता जा रहा था.
अशोक जब भी लावण्य से शादी की बात करता तो वह एक ही बात कहती, ‘‘अशोक, मैं डैडी को इस हालत में कैसे छोड़ सकती हूं. मैं अभी शादी नहीं कर सकती.’’
उधर अशोक की मां बारबार उस से शादी के बारे में पूछती रहती थी. वह मां को सम झा नहीं पा रहा था कि मामला क्या है. आखिर रणजीत और डा. संजय ने भी लावण्य से कहा, ‘‘लावण्य, तुम कब तक इंतजार करोगी. मेजर साहब की हालत सुधरने वाली नहीं है.’’