अशोक नैपकिन में हाथ पोंछते हुए अपनी जगह से उठा और मेजर विवेक के पास आ कर बोला, ‘‘सर, मैं आप की बेटी लावण्य से प्यार करता हूं. मैं इस से शादी करना चाहता हूं.’’
मेजर विवेक एकटक अशोक को ताकने लगे. एकदो पल बीते. लावण्य अपना कौर हाथ में लिए बैठी रह गई थी. सभी एकदम खामोश रह गए थे. मेजर ने छूटते ही कहा, ‘‘आई लाइक दैट. यानी तुम मेरी बेटी से विवाह के लिए अनुमति मांग रहे
हो अशोक?’’
‘‘जी सर, अनुमति और आशीर्वाद.’’
‘‘और यदि मैं इनकार कर दूं, तो...’’
‘‘तो, तो सर,’’ अशोक हड़बड़ाया. उस की सम झ में यह नहीं आया कि यह मजाक हो रहा है या सीरियस बात चल रही है.
‘‘बोलो, बोलो. चुप क्यों हो गए.’’
‘‘सर, इस का जवाब लंबा है.’’
‘‘पर बोलो.’’
‘‘सर, आप लावण्य की इच्छा नहीं जानेंगे? यदि उस ने हां कर दिया, तब भी आप इनकार कर देंगे?’’
‘‘इस तरह की तमाम घटनाएं सामने आई हैं.’’
‘‘तब तो सर मु झे झगड़ा करना पड़ेगा.’’
‘‘निश्चित.’’
‘‘जी सर,’’ अशोक बोला.
मेजर विवेक ने अशोक का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तुम्हें पता है, मेरी जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही घटा था. यू नो विद्या.’’
मेजर विवेक के इतना कहते ही लावण्य का थाली में रखा हाथ वैसा ही रखा रहा. जया भी गरम रोटी लिए खड़ी रह गई.
अशोक ने दोनों के रिऐक्शन को गौर से देखा. वहां किसी नाटक की भांति गंभीर सीन जैसा माहौल बन गया था. मम्मी का नाम आते ही लावण्य के चेहरे पर भय स्पष्ट झलक रहा था.
अशोक सभी को बारीबारी से देख रहा था. मेजर विवेक ने कहा, ‘‘विद्या को मैं बचपन से ही चाहता था. मैट्रिक तक हम दोनों साथसाथ पढ़े थे. उस ने मु झ से कहा था कि वह शादी सिर्फ सेना के अफसर से ही करेगी. फिर उस के लिए मैं सेना में अफसर हो गया.