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वे बचपन से ही कहती थीं, ‘मैं किसी सैनिक से ही शादी करूंगी.’ अशोक, मेरे डैडी सिर्फ इसीलिए सेना में गए थे, जिस से वे विद्या यानी मेरी मम्मी से शादी कर सकें. वे मेरी मम्मी के सपनों का राजकुमार बन कर उन की जिंदगी में वापस आए थे. सैकंड लैफ्टिनैंट का कमीशन ले कर आने पर मेरी मम्मी को उन पर गर्व हुआ था. यूनिफौर्म का गर्व मेरे डैडी को था तो डैडी पर मेरी मम्मी को गर्व था.

‘‘कभीकभी तो उन दोनों के प्यार को देख कर मु  झे ही ईर्ष्या होने लगती थी. मम्मी जैसी खूबसूरत स्त्री मैं ने आज तक नहीं देखी है,’’ लावण्य बोली.

अशोक भी कहना चाहता था कि उस जैसी सुंदर, लावण्यमयी स्त्री उस ने भी नहीं देखी परंतु कह नहीं सका. तभी लावण्य ने अपनी बगल वाली कुरसी पर रखा अपना पर्स उठाया और उस में से पोस्टकार्ड साइज का एक फोटो निकाल कर अशोक के हाथ में रख दिया. अशोक ने किसी पत्रिका की कवरगर्ल जितनी सुंदर उस तसवीर को देखा. वह जिस भी औरत की तसवीर थी, सचमुच वह बहुत सुंदर थी. लावण्य की बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं थी.

‘‘इस तसवीर से भी अधिक वह सुंदर थीं. यस, मोर ब्यूटीफुल दैन दिस पिक्चर. मेरे डैडी, बस, उन्हें प्रेम करते थे, अनर्गल प्रेम, नितांत अतिशयोक्तिभरा प्रेम,’’ इतना कह कर लावण्य शांत हो गई.

अशोक उस दिन लावण्य के साथ काफी देर तक बैठा रहा. दोनों ने साथसाथ खाना भी खाया. दोदो कप चाय भी पी ली थी. दोनों अलग हुए तो उस पर दुख की छाया थी, पर उस दुख में एक नया तत्त्व मिला था, अपनत्व का. अब उन्हें एकदूसरे से कहने की जरूरत नहीं थी कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं.

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