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Writer- श्वेता अग्रवाल

‘‘मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था. सिर्फ 3 दिन की ही तो बात थी, फिर मैं भी उसे देखूंगा कि वह कैसी दिखती होगी, कैसी ड्रैसिंग होगी, काली होगी या गोरी, लंबी होगी या नाटी, सीधीसादी होगी या मौडर्न, सुंदर होगी या... इन्हीं कल्पनाओं में 3 दिन कैसे बीत गए, पता ही न चला और वेडनेसडे आ पहुंचा.

‘‘मैं अच्छे से तैयार हो कर उस का इंतजार करने लगा. जब भी डोरबैल बजती, लगता कि कहीं वही तो नहीं. लेकिन उस की जगह किसी और को देख कर मैं खिसिया कर रह जाता. मेरे छोटे भाई रजनीश को मेरी यह हालत देख कर बड़ा मजा आ रहा था और वह बारबार इंतजार से जुड़ा कोई न कोई फिल्मी गाना गा कर मु?ो चिढ़ाने लगा.

‘‘जैसेजैसे दिन बीतता जा रहा था, मेरी खिसियाहट बढ़ती जा रही थी. मैं ने इस से पहले कभी खुद को इतना अपमानित महसूस नहीं किया था. रजनीश को भी शायद मेरी हालत का अंदाजा हो गया था और उस ने मु?ो चिढ़ाना बंद कर दिया था. उस के इंतजार में बैठेबैठे शाम हो गई थी. मेरा मन रोने को होने लगा था. मैं ने कसम खा ली कि अब उस से कभी बात नहीं करूंगा. फिर भी मन के किसी कोने में बारबार यह इच्छा होती कि वह मु?ो फोन करे और न आने की कोई जायज वजह बताते हुए इस के लिए मु?ा से माफी मांगे, पर उस का फोन नहीं आया. एकबारगी तो मेरा यह भी मन किया कि उस के औफिस के नंबर पर फोन कर के उसे खूब खरीखोटी सुनाऊं. फिर लगता कि जब गलती उस की है तो मैं क्यों खुद से उसे फोन करूं.

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