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कभीकभी अकेले में डायरी निकाल कर वह पर्चा पढ़ लेती. अब तक न जाने कितनी बार पढ़ चुकी थी. 12वीं के बाद घर में उस की शादी की चर्चा चलने लगी थी. जब भी वह मांबाबूजी को बात करते सुनती, उसे किशोर की याद आ जाती और उस का दिल रो पड़ता. तब वह खुद ही खुद को समझाती कि  किशोर से उस का क्या नाता है? मेले में ही तो मिला था. न जाने कितने लोग मिलते हैं मेले में. न जाने कौन है. अब वह जाने कहां होगा. मैं क्यों सोचती हूं उस के बारे में. उसे मैं याद हूं भी कि नहीं? उस का एक पर्चा ले कर बैठी हूं मैं. नहीं, अब नहीं सोचूंगी उस के बारे में, कभी नहीं सोचूंगी.

पुष्पा ने अपने मन में सोचा पर यह सब इतना भी आसान न था. उस ने अनजाने में ही अपने दिल के कोरे कागज पर किशोर का नाम लिख लिया था. अब यह नाम मिटाना आसान नहीं था उस के लिए.

देखतेदेखते साल बीत गया और मेले का समय नजदीक आ गया. जैसेजैसे वह दिन नजदीक आ रहा था, पुष्पा के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थी. उसे किशोर से मिलने की ललक मेले की ओर खींच रही थी.

मेले में जाने की तैयारी हो गईर् थी पुष्पा की. इस साल उस के साथ सिर्फ 2 ही सहेलियां थी, क्योंकि 2 सहेलियों की शादी हो गई थी. इन दोनों की भी शादी तय हो चुकी थी. घर वालों ने भी इजाजत दे दी कि न जाने शादी के बाद फिर कब मेला घूमना नसीब हो इन्हें. तीनों सुबह ही निकल पड़ीं मेले के लिए.

मेले में पहुंचने के बाद दोनों तो अपनी शादी के लिए शृंगार का सामान खरीदने में लग गईं जबकि पुष्पा की निगाहें किसी को ढूंढ़ रही थीं. उस का मेला घूमने में मन नहीं लग रहा था. मन बेचैन था. वह सोचने लगी, ‘पता नहीं उसे याद भी है कि नहीं. बेकार ही मैं परेशान हो रही हूं. इतनी छोटी सी बात उसे क्यों याद होगी? उसे तो मेरा नाम भी नहीं पता.’ पुष्पा को अपनी बेबसी पर रोना आ गया. उसे लगा कि  वह अभी रो देगी.

जल्दीजल्दी वह भीड़ से निकल कर मेले के बाहर बरगद के पेड़ की आड़ में खड़ी हो गई और अपने रूमाल से चेहरा छिपा कर रो पड़ी. 2 मिनट बाद रूमाल हटा कर उसी से अपना चेहरा साफ करने लगी. पूरा चेहरा आंसुओं से भीग चुका था. दिल दर्द से भरा हुआ था. किसी तरह से उस ने अपने ऊपर काबू किया और जैसे ही वह मुड़ी, सामने किशोर मुसकराता हुआ खड़ा था. अब भला पुष्पा अपने ऊपर काबू कैसे रख पाती. किशोर के प्रेम को पूरे एक साल तक उस ने दिल में ही दबा कर रखा था. इस समय वह अपने को रोक नहीं पाई.

किशोर को सामने पा वह सब भूल कर उस के सीने से लग कर फिर से सिसक पड़ी. ‘ओ किशोर, कहां थे अभी तक, कब से तुम्हें ढूंढ़ रही थी? अब तो निराश हो गई थी. तुम से मिलने की आशा भी छोड़ चुकी थी,’ रोते हुए पुष्पा बोली.

‘मैं भी सुबह से तुम्हें मेले में ढूंढ़ रहा हूं. मुझे लगा तुम सब भूल गई हो और मैं निराश हो कर मेले से बाहर निकल आया. यहां आ कर मैं ने तुम्हें रोते हुए देखा तो सब समझ गया और तुम्हारे पीछे खड़ा हो गया.’

किशोर की बांहें भी पुष्पा की पीठ पर कस गईर् थीं. थोड़ी देर तक दोनों दीनदुनिया से बेखबर एकदूसरे की बांहों में समाए हुए एकदूसरे की धड़कनें गिनते रहे. बरगद की शाखों पर बैठे पक्षी उन के प्रेम के साक्षी थे. उन के सामने के वृक्ष पर पत्तों के झुरमुट से एक कबूतर का जोड़ा आपस में लिपटे हुए उन्हीं दोनों को निहार रहा था. उन को मेले से कुछ लेनादेना नहीं था. दोनों वहीं बैठ गए और एकदूसरे के बारे में जानने की कोशिश करने लगे.

किशोर ने बताया, ‘मेरा इंग्लिश से एमए पूरा हो चुका है और अब नौकरी की तलाश में हूं. ‘तुम क्या कर रही हो?’

‘मेरा इंटर पूरा हो चुका है और घर में शादी की बात चल रही है,’ पुष्पा ने सिर झुका कर जवाब दिया.

बातें करतेकरते कितना समय बीत गया, दोनों को पता नहीं चला. बरगद के पेड़ पर पक्षियों का कलरव सुन कर जैसे वे होश में आ गए. फिर से एक बार बिछड़ने का समय आ गया था. जुदा होने के एहसास से ही पुष्पा की आंखें फिर से भीग गईं. तब किशोर ने उस के आंसू पोंछते हुए समझाया, ‘पुष्पा, अगर समय ने चाहा तो हम फिर मिलेंगे. हम एकदूसरे की जिंदगी में तो शामिल नहीं हो सकते पर एकदूसरे के दिल में हमेशा रहेंगे. मैं जिंदगीभर तुम्हें भूल नहीं पाऊंगा, शायद तुम भी.’

किशोर चला गया और पुष्पा भी भारी कदमों से अपने को घसीटती हुई घर आ गई थी. उस समय लड़का या लड़की किसी को भी इतनी इजाजत नहीं थी कि वह अपने दिल की बात अपने घर वालों को बता सके, न ही इतनी छूट थी कि वे एकदूसरे से मिल सकें. किशोर दूर के गांव में ठाकुर के घर का बेटा था और पुष्पा ब्राह्मण की बेटी, इसलिए ये दोनों कुछ सोच भी नहीं सकते थे.

कुछ दिनों बाद ही अच्छा लड़का देख कर पुष्पा की शादी कर दी गई. वह अपनी घरगृहस्थी में लग गई. धीरेधीरे किशोर की यादें उस के दिल के कोने में परतदरपरत दबती चली गईं.

अब की बार पुष्पा मायके आई तो मेला चल रहा था. आज 25 सालोें बाद वह फिर उसी मेले में आई. दिन भी वही. पति से बच्चों को घुमाने को बोल कर पुष्पा सिरदर्द का बहाना कर मेले के बाहर उसी बरगद के पेड़ के नीचे आ कर घास पर बैठ गई.

इस समय वह सब भूल कर किशोर की याद में डूब गईर् और अपने आंसुओं को रोक नहीं पाई. दिल पर लिखा हुआ किशोर का नाम जो वक्त के साथ धुंधला पड़ गया था, आज अचानक वह फिर से उभर गया था. वह अपने पर्स से रूमाल निकाल कर अपने आंसू पोंछने लगी पर आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. थोड़ी देर बाद ही सामने कुछ दूर एक गाड़ी आ कर रुकी. पुष्पा अपने आंसू पोंछने में लगी रही, सोचा, होगा कोई, उसे क्या.

गाड़ी ठीक उस के सामने ही रुकी थी. सो, न चाहते हुए भी उस की नजर उस पर पड़ रही थी. उस ने देखा गाड़ी में से एक लंबा सा आदमी फ्रैंचकट दाढ़ी में आंखों पर काला चश्मा लगाए हुए निकल कर उसी की ओर बढ़ा आ रहा है. उसे इस समय किसी का ध्यान नहीं है. वह यह भी भूल गई थी कि उस के पति व बच्चे मेले में हैं. इस समय वह खुद को भी भूल कर सिर्फ किशोर के खयालों में डूबी थी.

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