‘‘ठीक है. मैं कल फोटो और रुपए लेता आऊंगा.’’
‘‘अच्छी बात है. फौर्म भी कल ही भर देना, यह हमारा कार्ड रख लीजिए, मेरा नाम बाबूभाई है.’’
प्रणय जाने लगा तो बाबूभाई ने उसे हिकारत से देख कर मुंह फेर लिया. ‘हुंह,’ वह बुदबुदाया, ‘चले आते हैं खालीपीली टाइम खोटा करने के लिए.’
प्रणय दफ्तर से बाहर निकल कर सोचने लगा, ‘अगर एक हजार रुपए भरने पर भी काम न बना तो यह रकम पानी में गई, समझो. उंह, हटाओ, मुझे सोनाली की शादी से क्या लेनादेना है, भले शादी करे या जन्मभर कुंआरी रहे, मेरी बला से.’
अचानक लिफ्ट का द्वार खुला और उस में से एक नौजवान निकल कर सधे कदमों से चलता ‘मनपसंद’ के दफ्तर में दाखिल हुआ. प्रणय उसे घूरता रहा, अरे, यह कौन था, कोई हीरो या किसी रियासत का राजकुमार. वाह, क्या चेहरामोहरा था, क्या चालढाल थी, ऐसे ही वर की तो मुझे तलाश है.’
वह वहीं गलियारे में चहलकदमी करता रहा. कुछ देर बाद वह युवक दफ्तर से निकला तो प्रणय ने उसे टोका, ‘‘सुनिए.’’
युवक मुड़ा, ‘‘जी, कहिए?’’
प्रणय बोला, ‘‘बुरा न मानें, तो एक बात पूछूं? आप इस मनपसंद संस्था में वधू के लिए अरजी देने गए थे?’’
‘‘आप का अंदाजा सही है. मुझे शादी के लिए एक लड़की की खोज है.’’
‘‘यदि आप के पास थोड़ा समय हो तो चलिए, पास के होटल में चाय पी जाए. मेरी निगाह में एक अति उत्तम कन्या है.’’
प्रणय ने होटल में बैठ कर सोनाली की तारीफ के पुल बांधे तो उस युवक ने पूछा, ‘‘क्या सचमुच ऐसी कन्या उपलब्ध है?’’
‘‘अजी, हाथ कंगन को आरसी क्या. मैं कल ही आप को उस से मिला देता हूं, लेकिन कुछ अपने बारे में भी बताइए.’’
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