Writer- सावी मंगला
याद एक ऐसा शब्द, जिसे सोचते ही मन मानो कहीं गुम सा हो जाता है. कितनी अनोखी और अनूठी होती हैं ये यादें. कभी होंठों पर मुसकराहट ले आती हैं तो कभी आंखों को आंसुओं से नवाज देती हैं. कुछ पलों को याद कर हम हंस पड़ते हैं, तो कुछ पलों के जिक्र से ही आंखों से आंसुओं की लड़ी बह जाती है. लेकिन कुछ यादें हमारी जिंदगी में हमारे साए की तरह हमारे साथ हर पल रहती हैं.
यादों के कुछ ऐसे ही भंवर में उलझी जारा जब अपनी बड़ी सी काली गाड़ी से उतरी तो अचानक उस की आंखें डबडबा आईं. उस की आंखों के आगे वो सपने तैरने लगे, जो तकरीबन 15 साल पहले उस ने इस मंदिर जैसे स्कूल में बिताए थे. उस के मन में भावनाओं का बवंडर उठ रहा था. अनचाहे ही वह अतीत की उन गलियों में खोती जा रही थी, जिन से वह 15 साल पहले गुजर चुकी थी.
आज वह उस महरून रंग की इमारत के सामने खड़ी थी, जिस की बड़ी सी दीवार पर एक तरफ बड़ी ही खूबसूरती से लिखा गया था, 'भारतीय विद्या भवन' और दूसरी तरफ स्टील से बना उभरा हुआ स्कूल का ‘लोगो’ जड़ा हुआ था.
इमारत के चारों तरफ हरेभरे पेड़पौधे बिलकुल वैसे ही लगे हुए थे जैसे उस ने 15 साल पहले इस स्कूल को छोड़ते समय थे. यहां इस जगह की हवा में ही मानो गुलाब की खुशबू घुली हुई हो.
जारा ने लंबी सांस ली तो ये खुशबू उस के जेहन में घुल गई. जारा को मानो कई सालों बाद ऐसा सुकून मिला हो. लेकिन सुकून के साथ वो तमाम यादें भी उस के जेहन में उतर गईं, जिन्हें भुलाने की वो हजार मरतबा नाकाम कोशिशें कर चुकी थी. अब तो मानो वह हिम्मत ही हार चुकी थी या यों कहो कि समझ चुकी थी कि ये यादें उस का साया बन हमेशा उस के साथ चलती रहेंगी. पर इस बार आसपास के माहौल को समझते हुए उस ने अपनेआप को संभाला और अपनी नीले रंग की चिकन की कढ़ाई वाली साड़ी जिस पर जहीन कारीगरी की गई थी, उसे उस के सब से अजीज दोस्त सिद्धार्थ ने दी थी. ये उस का पसंदीदा रंग था. उसे ठीक करते हुए वह आगे बढ़ी और चलतेचलते स्कूल की दहलीज तक पहुंच गई. अंदर जाते हुए उस ने महसूस किया कि इतने सालों में वहां कुछ भी तो नहीं बदला था. वही खुशबू, वही सजावट और सब से बड़ी बात वही रीतिरिवाज.