मुग्धा के लिए गरमागरम दूध का गिलास लेकर मानिनी उस के कमरे में पहुंची तो देखा, सारा सामान फैला पड़ा था.
‘‘यह क्या है, मुग्धा? लग रहा है, कमरे से तूफान गुजरा है?’’
‘‘मम्मी बेकार का तनाव मत पालो. सूटकेस निकाले हैं, पैकिंग करनी है,’’ मुग्धा गरमागरम दूध का आनंद उठाते हुए बोली.
‘‘कहां जा रही हो? तुम ने तो अभी तक कुछ बताया नहीं,’’ मानिनी ने प्रश्न किया.
‘‘मैं आप को बताने ही वाली थी. आज ही मुझे पत्र मिला है. मेरी कंपनी मुझे 1 वर्ष के लिए आयरलैंड भेज रही है.’’
‘‘1 वर्ष के लिए?’’
‘‘हां, और यह समय बढ़ भी सकता है,’’ मुग्धा मुसकराई.
‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता. विवाह किए बिना तुम कहीं नहीं जाओगी.’’
‘‘क्या कह रही हो मां? यह मेरे कैरियर का प्रश्न है.’’
‘‘इधर, यह तुम्हारे जीवन का प्रश्न है. अगले मास तुम 30 की हो जाओगी. कोई न कोई बहाना बना कर तुम इस विषय को टालती रही हो.’’
‘‘मैं ने कब मना किया है? आप जब कहें तब मैं विवाह के लिए तैयार हूं. पर अब प्लीज मेरी आयु के वर्ष गिनाने बंद कीजिए, मुझे टैंशन होने लगती है.
मुझे पता है कि अगले माह मैं 30 की हो जाऊंगी.’’
‘‘मैं तो तुझे यह समझा रही थी कि हर काम समय पर हो जाना चाहिए. यह जान कर अच्छा लगा कि तुम शादी के लिए तैयार हो. सूरज मान गया क्या?’’
‘‘सूरज के मानने न मानने से क्या फर्क पड़ता है?’’ मुग्धा मुसकराई.
‘‘तो विवाह किस से करोगी?’’
‘‘यह आप की समस्या है, मेरी नहीं.’’
‘‘क्या? तुम हमारे चुने वर से विवाह करोगी? अरे तो पहले क्यों नहीं बताया? हम तो चांद से दूल्हों की लाइन लगा देते.’’