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सुबोध उस का अच्छा मित्र था. कालेज में वे दोनों सहपाठी थे. अद्भुत व्यक्तित्व था उस का. पर मुग्धा को उस के गुणों ने आकर्षित किया था. सुबोध उस के लिए आसमान से चांदतारे तोड़ कर लाने की बात करता तो वह अभिभूत हो जाती.

पर जब वह मां और अपने पिता राजवंशी से इस संबंध में बात करने ही वाली थी कि सुबोध ने अपनी शादी तय होने का समाचार दे कर उसे आकाश से धरती पर ला पटका. सुबोध बातें तो उस के बाद भी बहुत मीठी करता था. उस के अनुसार प्यार तो अजरअमर होता है. वह चाहे तो वे जीवनभर प्रेमीप्रेमिका बने रह सकते हैं. सुबोध तो अपने परिवार से छिप कर उस से विवाह करने को भी तैयार था पर वह प्रस्ताव उस ने ही ठुकरा दिया था.

उस प्रकरण के बाद वह लंबे समय तक अस्वस्थ रही थी. फिर उस ने स्वयं को संभाल लिया था. मुग्धा चारों भाईबहनों में सब से छोटी थी. सब ने अपने जीवनसाथी का चुनाव स्वयं ही किया था. अब अपने ढंग से वे अपने जीवन के उतारचढ़ाव से समझौता कर रहे थे. भाईबहनों के पास न उस के लिए समय था न ही उस से घुलनेमिलने की इच्छा. तो भला उस के जीवन में कैसे झांक पाते. मां भी सोच बैठी थीं कि वह भी अपने लिए वर स्वयं ही ढूंढ़ लेगी.

विशाल और रंजन उस के जीवन में दुस्वप्न बन कर आए. दोनों ही स्वच्छंद विचरण में विश्वास करते थे. रंजन की दृष्टि तो उस के ऊंचे वेतन पर थी. उस ने अनेक बार अपनी दुखभरी झूठी कहानियां सुना कर उस से काफी पैसे भी ऐंठ लिए थे. तंग आ कर मुग्धा ने ही उस से किनारा कर लिया था.

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