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कुमार रंगा अपनी प्रेमिका सोनिया की खुशियों के लिए धर्मा ने अपनी जमीन तक बेच दी और उसे अमेरिका पढ़ने भेज दिया. मगर वहां जा कर सोनिया धर्मा को भूल अपराध की दुनिया में जा फंसी और फिर वही हुआ जिस की कल्पना खुद उस ने भी नहीं की थी. धर्मा ने ट्रैक्टर को एक किनारे लगाया और कूद कर पास बहते नल के नीचे बैठ गया. दिनभर की कड़ी मेहनत का पसीना और पानी की बूंदें आपस में यों मिल गईं जैसे सदियों से बिछड़े प्रेमी युगल मिलते हैं.

कुछ समय के लिए धर्मा मानो गरमी से कहीं दूर जा चुका था. आंखें बंद कर के भारत से कहीं दूर पश्चिम के किसी देश में पहुंच गया था और वहां की ठंडी हवाएं उसे जमा रही थीं और सर्दी ने उस के बदन को जकड़ लिया था कि अचानक भाभी की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘थक गया धर्मा, आज गरमी ने भी न जाने कब का बदला चुकाया है. इतनी चिलचिलाती धूप, बादल का कहीं नाम ही नहीं और उस पर तुम्हें दिनभर खेत में रहना पड़ता है,’’ भाभी के हाथ से तौलिया लेते हुए धर्मा मुसकराते हुए बोला, ‘किसान धूप में नहीं जाएगा तो क्या साहूकार जाएंगे. असली किसान का तो मंदिर, पूजापाठ, गुरुद्वारा सब खेत की मिट्टी में ही है.’’ भाभी ने धर्मा की इन बातों को सुन कर अनसुना कर दिया, ‘‘तू यहां खुश नहीं है धर्मा, तु?ो सोतेजागते, उठतेबैठते परदेस याद आता है.’’ ‘‘यह तो नहीं पता भाभी, लेकिन एक सपना जरूर है कि अमेरिका जाऊं, वहां रहूं, मजे करूं लेकिन क्या करूं पढ़ालिखा नहीं हूं न, इंग्लिश के 4 लफ्ज नहीं आते.’’ ‘‘हां, सो तो है. अगर तेरे भैया जिंदा होते तो शायद, तेरे जाने का कुछ...’’ ‘‘उदास मत हो भाभी, आप तो जानती हैं कि मैं आप को और भतीजे को हमेशा खुश देखना चाहता हूं. मेरी तरफ से हमेशा कोशिश रहती है कि आप दोनों को कोई तकलीफ न हो.’’ ‘‘अच्छा, मु?ो तुम से एक काम है. मेरी सहेली सोनिया आई हुई है. उसे कुछ पैसे चाहिए. रकम बड़ी है,

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