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“मन्नो, मन्नो.”

“हां, बोलो.”

“फुरसत मिल गई अपने काम से...? या अभी भी पिज्जा डिलीवरी के लिए और जाना है?”

“मन्नो, सुनो तो. यों मुझ पर गुस्सा तो मत करो प्लीज.”

“गुस्सा न करूं तो क्या करूं? रोजाना आधी रात के बाद घर लौटते हो. कभी सोचा है, आधी रात तक का मेरा वक्त कैसे बीतता है अकेले बिस्तर पर करवटें बदलतेबदलते?”

“सब समझता हूं मन्नो, लेकिन मैं करूं तो क्या करूं? घर बैठ जाऊं? पिछले महीने घर बैठा तो था. याद है या भूल गई? दो वक्त की रोटियों तक के लाले पड़ गए थे. इतनी मुश्किल से तो यह नौकरी मिली है. अब इसे भी छोड़ दूं?”

“दूसरी नौकरी तलाशोगे तब तो मिलेगी. तुम्हारी यह आधीआधी रात तक की नौकरी मुझे तो फूटी आंख नहीं सुहाती. दिनदिन की नौकरी करो ना, भलेमानसों की तरह. मैं भी तो नौकरी करती हूं. शाम को 7 बजतेबजते लौट आती हूं कि नहीं? अरे ढूंढ़ोगे तब तो मिलेगी न नौकरी. यों हाथ पर हाथ धर कर तो मिलने से रही नई नौकरी.”

“तो तुम्हारा मतलब है कि मैं हाथ पर हाथ रख कर बैठा रहता हूं? बस, बस, अपनी नौकरी को ले कर ज्यादा उड़ो मत. तुम चाहती हो कि तुम्हारी इस 10,000 रुपए की नौकरी के दम पर मैं अपनी लगीलगाई नौकरी छोड़ दूं और फिर से सड़कों की खाक छानूं?”

“मेरी 10,000 रुपए की नौकरी तुम्हारी इस फूड डिलीवरी की नौकरी से लाख गुना बेहतर है. कम से कम समय पर घर तो आ जाती हूं मैं.”

“अब कितनी बार आधी रात घर लौटने को ले कर ताने सुनाओगी. बस भी करो यार. अपना स्यापा बंद भी करो. न चैन से खुद रहती हो और न ही मुझे रहने देती हो. जिंदगी नरक बन कर रह गई है.”

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