मुसकराहट में वशीकरण है, नेत्रों में मदिरा की मस्ती है, पलकों की चिलमन से परखने की कला है, तब तक रूपसौंदर्य के भ्रमर उस पर न्यौछावर होते रहेंगे.
प्यार में बंध गई नूरी बेगम
उसे याद है कि नूरी के रूप में पहली बार जब वह अपने माहुरी पैरों में घुंघरुओं को बांध कर, झीने आसमानी चमकते परिधान में भरी महफिल में साजिंदों के वाद्ययंत्रों की स्वरलहरियों और थापों के बीच उपस्थित हुई थी, तब ऐसा लगा था कि नीलगगन में कोई आकाशगंगा अवतरित हो गई हो. महफिल में आए सभी लोगों की निगाहों पर मानों पक्षाघात सा हो गया. उस के अनिंद्य सौंदर्य पर तरहतरह की उपमाओं की बौछारें होने लगीं. उस दिन उस ने वही सब कुछ किया था, जो उसे सिखाया गया था.
अब उस की हर रात पिछली बीती रात से कहीं अधिक खुशनुमा होती, क्योंकि उस की दिलकश अदा के मुजरों की अदायगी और बानगी, उस के पैरों की थिरकन और खंजर जैसे नेत्रों के तीखे कटाक्ष तथा उस की एकएक भावमुद्रा और अंगप्रत्यंगों में बिजली सी चमक पैदा करती थी. उस के कामोद्ïदीपन युक्त दहकते शरीर की ऊष्णता से अपने को तृप्त करने की उत्कंठा में
पुराने आशिक मिजाज चेहरों के साथ रोज कुछ नए चेहरे भी महफिल में मौजूद होते और उस की एकएक अदा पर रुपयों और अशर्फियों व आभूषणों की बौछार करते थे. जब इस सब के बदले में कृतज्ञता यापन के लिए बाअदब कोर्निश करता हुआ उस का दाहिना हाथ उठा कर माथे को स्पर्श करता तो लोग उस की इस रस्म अदायगी की नजाकत पर मर मिटते थे. उन की फिकरेबाजी से कक्ष गूंज उठता था.