राजस्थान को सैकड़ों साल पहले राजपूताना के नाम से जाना जाता था. राजपूताना अर्थात राजपूतों की आनबान और शान का एक आदर्श प्रतीक. शरणागतों की रक्षा में अपने को सदैव बलिदान करने में अग्रणी रहने वाला प्रेरणा का एक स्रोत.
स्वतंत्रता की दीपशिखा को सतत प्रज्ज्वलित रखने वाला एक अप्रतिम पावन तीर्थ. शौर्य व पराक्रम की साक्षात प्रतिमूर्ति.
इसी जयपुर नगर में स्थित है देश का प्रसिद्ध जौहरी बाजार, जो जवाहरातों और उन के कला पारखी जौहरियों के नाम पर अपनी एक अलग ही साख रखे हुए है. इसी जौहरी बाजार में ही सांगानेरी दरवाजे के पास कांच की सुंदर पच्चीकारी के कारण प्रसिद्ध ‘कांचमहल’है. इस भव्य महल को लगभग 200 साल पहले नूरी बेगम ने आ कर अपने रूपसौंदर्य एवं सारंगी के तारों की झंकृत कर्णप्रिय मनमोहक झंकार, तबले की थापों की संगत और पैरों में बंधे हर घुंघरू की मदमाती थिरकन और मधुर स्वर लहरियों की गूंज से और भी अधिक रंगीन व आकर्षण का केंद्र बिंदु बना दिया था.
नूरी बेगम मूलरूप से कहां की थी, किस की औलाद थी, यह किसी आशिकमिजाज आगंतुक ने कभी जानने की कोशिश नहीं की, लेकिन वह स्वयं इतना अवश्य जानती थी कि परिस्थितियों और बेगम बनने के प्रलोभन में उसे शाही महल या शानदार कोठी नहीं मिली, बल्कि दुर्भाग्य ने दिया उसे कोठा. लेकिन उसे वह दिन अच्छी तरह से याद है, जब अन्य कुंवारी लड़कियों
की तरह अपनी अनियारी आंखों में समाए अनेक स्वप्नों और हृदय में प्यार भरे अरमानों के सुंदर महल की कल्पना की वह नींव ढहा दी गई थी, जिस पर प्यार व हसरतों का सुंदर महल खड़ा होना था. आंखों में समाए सजीले सुखद सपनों की डोली, कोठे की परंपरा ने बुरी तरह से ऐसे फेंक दी कि सारे सपने कांच के टुकड़ों की तरह बिखर कर रह गए और उन कांच के टुकड़ों
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