पंडितजी की दृष्टि नूरी की दृष्टि से जा टकराई, मानो वह आगे कहने की इजाजत मांग रहे हों. नूरी ने भी आंखें झुका कर के मानो पंडितजी को अपनी ओर से अनुमति दे दी. पंडितजी ने कहा, “तो सुनिए, नजरें झुकी रहीं तो रही अंजुमन खामोश,
नजरें जब उठ गईं तो हजारों बहक गए.”
नूरी इस शेर पर शरमा कर रह गई. उस के मुख पर लज्जा की रक्तिम आभा फैल गई. बड़ीबड़ी कजरारी नयनों वाली नूरी के नेत्र झुक गए. माथे पर शोभित शीर्ष फूल भी खुशी में माथे को छोड़ कर झूम उठा. गुलाबी रसीले अधरों के बीच दंतपंक्ति दमक उठी और लोग चिल्ला उठे, “वाह पंडितजी, क्या शेर है? गजब के खयालात हैं. हर शेर अपने में लाजवाब. अब आगे
फरमाइए.”
पंडितजी ने नूरी की तरफ हंसती हुई आंखों से देखा और कहा, “बेगम साहिबा, कहने की इजाजत है?”
नूरी की नजरें उठीं. पंडितजी ने रतनारी नयन सीपियों में झांक कर देखा. वे सिहर उठे. नूरी ने बड़ी ही शालीनतापूर्वक उत्तर दिया, “कहिए.”
पंडितजी ने महफिल को संबोधित करते हुए कहा, “जरा इस आखिरी शेर पर खास तौर से गौर फरमाएं.”
सामूहिक आवाज गूंज उठी, “जरूरजरूर, अर्ज करें.”
पंडितजी ने शेर पढ़ा, “उस के नूरे जिस्म की, रौनक को क्या कहें, निकला न आफताब, परंदे चहक गए. ऐसी चली बयार कि गुलशन महक गए.”
पूरा कक्ष गूंज उठा, “क्या बात है? वाह खूब. कमाल है पंडितजी. क्या नई सोच है? क्या अंदाजे बयां है. सुभान अल्लाह.” वगैरहवगैरह.
नूरी की खाला, जो अभी तक शांत बैठी थी, अपनी नूरी की इस प्रकार की प्रशंसा सुन कर बागबाग हो उठी. उस के मुंह से भी निकला, “वाह पंडितजी, वाह! इस शेर ने तो बड़ेबड़े शायरों को बहुत पीछे छोड़ दिया है.”