जब से रशिका की मुलाकात हनीफ से हुई है उस के दिल में एक अजीब सी हलचल मची हुई है. हनीफ की शख्सियत रशिका के अंदर कई सवाल खड़े कर रही है. औफिस में लोगों के बीच होती कानाफूसी रशिका को और अधिक विचलित कर देती है. कोई कहता है कि अरे, इन के तो खून में ही बेवफाई होती है, तो कोई कहता, इन लोगों को तो दूसरों की भावनाओं संग खेलने और फिर उसे पूरी तरह से तबाह कर छोड़ देने की बचपन से तालीम दी जाती है. जिहाद...जिहाद...जिहाद कहकह कर इन्हें जिहादी बना दिया जाता है.
रशिका के कानों पर जब भी ये बातें पड़तीं, वह तिलमिला उठती. लेकिन कहती किसी से कुछ नहीं. उसे अभी इस औफिस में जौइन किए हुए केवल एक ही महीना हुआ था. लेकिन इस एक ही महीने में उस ने इतनी दफे हनीफ के बारे में गलत सुन लिया था कि उस के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो गया था कि वह जो सुन रही है उस पर यकीन करे या फिर जो देख रही है उस पर.
बचपन से रशिका यह सुनती आई है कि जो दिखता है वह हमेशा सच नहीं होता है. इस के अलावा उसे अपने परिवार द्वारा यह सबक भी कंठस्थ करा दिया गया है कि हनीफ जैसों को क़ौम के लोगों से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि ये किसी के भी सगे नहीं होते. इसलिए तो उस ने अपनी सब से अच्छी व प्यारी सखी गजाला की दोस्ती पर दाग लगा दिया था. आज भी उस के स्मृतिपटल पर अंकित है वह वाकेआ जो उस के दिल में दास्तां ए दर्द बन कर दफन है और जिसे वह अब तक कभी भुला नहीं पाई. आज भी उसे ऐसा लगता है जैसे उस के अपने ही दकियानूसी सोच और परिवार वालों के दबाव की वजह से उस ने अपनी अभिन्न सहेली और शुभचिंतक गजाला को खो दिया है.