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रशिका इस प्रोजैक्ट को रिजैक्ट कर देना चाहती थी लेकिन दिल के आगे भला आज तक किसी का जोर चला है जो रशिका का चलता. वैसे भी किसी ने ठीक ही कहा है कि किसी के चाहने से क्या होता है, वही होता है जो होना होता है. रशिका खुद को संभालने में लगी हुई थी, इसलिए उस ने निश्चय किया कि वह यह प्रोजैक्ट नहीं करेगी, यही सोच कर वह इस प्रोजैक्ट को नहीं कहने के लिए जा ही रही थी कि कौरिडोर में हनीफ से टकरा गई और हनीफ ने उस से पूछ लिया- "रैडी फौर अ न्यू प्रोजैक्ट?"

रशिका हनीफ को यह नहीं कह पाई कि वह उस के साथ नहीं जाना चाहती. वह थोड़ी मुसकराती और थोड़ी सकुचाती हुई बोली- "इया, आय एम रैडी."

15 दिनों तक हनीफ के साथ एक ही छत यानी एक होटल में रहना होगा, यह सोच कर रशिका का दिल हिचकोले खाने लगा. भीतर ही भीतर रशिका का दिल इस बात से भी डरने लगा, कहीं अपने जज्बात के आगे वह कमजोर न पड़ जाए. उस के मन में दबा हुआ प्यार सिर उठाने की गुस्ताखी न कर बैठे. लेकिन अब सिर ओखली में रख ही दिया है तो फिर मूसल से क्या डरना. जो होगा, देखा जाएगा, यह सोच कर रशिका सब के साथ बैंगलुरु आ गई.

यहां बैंगलुरु में पहले से ही होटल व सभी के लिए अलग कमरे बुक थे. इस ग्रुप में रशिका के साथ एक और लड़की उपासना भी थी, जो इस एक महीने में रशिका की शुभचिंतक बन गई थी और हर वक्त रशिका को हनीफ से सतर्क रहने व हनीफ से बच के रहने के लिए आगाह करती रहती थी. हनीफ को मिला कर 2 और लड़के भी थे राजीव और संदीप. कुल मिला कर इन का 5 लोगों का एक ग्रुप था जो इस नए प्रोजैक्ट पर काम करने वाला था, जिसे लीड हनीफ ही कर रहा था.

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