‘‘देख प्रीति, यह संभव नहीं. मेरे घर वाले ऐसे बेमेल रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे और मेरा दिल भी इस की गवाही नहीं देता. क्या कहूंगी उन्हें कि एक आटो वाले से प्यार करती हूं? नहीं यार, कभी नहीं. इतना नहीं गिर सकती मैं. वह चाहे कितना भी काबिल हो, है तो एक आटो वाला ही न?’’
वसुधा का जवाब मुझे पता था, पर वह यह सब इतनी बेरुखी से कहेगी, यह मैं ने नहीं सोचा था. मैं समझ गई, वसुधा कभी उसे स्वीकार नहीं करेगी. मुझे भी वसुधा का फैसला सही लगा.
एक दिन सुबहसुबह ही वसुधा ने मुझे फोन किया, ‘‘प्रीति प्लीज, अभी जल्दी से मेरे घर आ जा. एक बहुत जरूरी बात करनी है.’’
उस की बेसब्री देख कर मैं जिन कपड़ों में थी, उन्हीं में उस के घर पहुंच गई. फिर पूछा, ‘‘क्या बात है? सब ठीक तो है? बूआजी कहां हैं?’’
वह मुझ से लिपटती हुई बोली, ‘‘बूआजी 4 दिनों के लिए मामाजी के यहां गई हैं.’’
मैं ने देखा, उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. मैं ने पूछा, ‘‘वसुधा, बता क्या हुआ? रो क्यों रही है?’’
‘‘ये खुशी के आंसू हैं. मुझे मेरा हमसफर मिल गया प्रीति,’’ वह बोली.
‘‘अच्छा... पर है कौन वह?’’
‘‘वह और कोई नहीं, अभिषेक ही है.’’
‘‘क्या? इतना बड़ा फैसला तू ने अचानक कैसे ले लिया? कल तक तो तू उस के नाम पर भड़क जाती थी?’’ मैं ने चकित हो कर पूछा.
वह मुसकराई, ‘‘प्यार तो पल भर में ही हो जाता है प्रीति. कल शाम तू नहीं थी तो मैं अकेली ही अभिषेक के आटो में बैठ गई. मुझे एक बैग खरीदना था. उस ने कहा कि मैं जनपथ ले चलता हूं. वहां से खरीद लेना.
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