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लेखिका- मेहा गुप्ता 

अलसाई हुई सी धूप लान की घास पर से उतरती हुई समुद्र किनारे की रेत पर आ बैठी

थी. अनामिका आर्म चेयर पर आँखें मूँदे लेटी थी. इतने में एक तेज़ हवा के झोंके ने उसे कंपकँपा दिया और उसने अपना गुलाबी सिल्क का स्कार्फ़ कंधे पर से उतारकर अपने बदन पर लपेटकर उसे चूम लिया. अभी तक उसके वार्डरोब में इन शोख़ रंगो के लिए कोई जगह नहीं थी. बिलकुल उसके दिल की तरह जिसमें सिर्फ़ उदासी, एकाकीपन के सफ़ेद काले रंगों का ही साम्राज्य था . पर आर्यन नाम के रंगरेज ने उसकी ज़िंदगी को, उसके दिल को चटक रंगो से सरोबार कर दिया था.

उसने घड़ी की तरफ़ नज़र डाली और बेचैनी से आर्यन का इंतज़ार करने लगी. आर्यन बैंकाक से लौटने वाला था. अँधेरा गहराने पर वह आर्म चेयर पर से उठ खड़ी हुई और पैरों में स्लीपर डाले अपने कमरे में लगे बड़े आइने तक आयी. आर्यन के प्यार की मख़मली छींट ने उसके गुलाब से चेहरे की रंगत को और भी बढ़ा दिया था जिसे देखकर वह स्वयं मुग्ध हो गई. उसने नीले रंग का गाउन निकालकर पहन लिया. नीला रंग आर्यन को बेहद पसंद था. उसे मालूम था आर्यन उसे टीशर्ट और ट्रैकपैंट में देखते ही कहेगा,’क्यों अपने साथ इतनी नाइंसाफ़ी करती हो, कायनात ने दिल खोलकर नूर बरसाया है आप पर और आप हैं कि आपको इसकी बिल्कूल क़द्र ही नहीं है. मॉडर्न कपड़ों में आप नाज़ुक सी कॉलेज गोइंग गर्ल लगती हैं.’ सोचते ही अनामिका के लबों पर मुस्कान दौड़ गई .

 

आर्यन के ना पहुँचने पर अनामिका ने उसे फ़ोन लगाया .

” तुम अभी तक आए नहीं ? गाड़ी ड्राइवर तो तुम्हें एरपोर्ट पर मिल गए होंगे ना ?”

” हाई स्वीट हार्ट ! शिट! आई ऐम सो सॉरी! मैं आपको मैसेज करना ही भूल गया । जब आपका काल आया मैं मार्केट में था. वहाँ पर नेटवर्क इश्यू होने से आप से बात ही नहीं हो पाई. अच्छा एक गुड न्यूज़ है, डील पक्की हो गई है. वो लोग हर हफ़्ते माल इम्पोर्ट के लिए तैयार हो गए हैं.”

” ओके, बाई ! कल मिलते हैं. मिसिंग यू !” उसकी ख़ुशी उसकी आवाज़ में झलक रही थी.

” बच्चा है बिलकुल . जल्दी आ जाओ .. आई ऐम मिसिंग यू टू ” फ़ोन रख उसने साइड टेबल पर रखे फ़ोटो फ़्रेम में लगी आर्यन की फ़ोटो को चूमते हुए कहा. आज बहुत अरसे बाद उसने अपना ब्लॉग खोला था जिसमें वह अपनी भावनाओं को , ज़िंदगी के प्रति अपने दृष्टिकोण को बयां करती थी. उसके डैड कहा करते थे उसमें ये आदत उसकी माँ से आई है वह भी वक़्त निकालकर रोज़ एक कविता ज़रूर लिखती थी .माँ को उसने बचपन में ही खो दिया था .

उसके डैड प्रशासनिक सेवा में उच्च अधिकारी थे . उन्होंने उसे माँ बाप दोनों का प्यार देने की भरसक कोशिश की . वह बचपन से ही गम्भीर स्वभाव की थी . दो साल पहले पिता की अकस्मात् मृत्यु ने तो उसे बिलकुल ही ख़ामोश बना दिया था. एक गम्भीरता , रूखापन उसके वजूद का हिस्सा बन गए थे . इस अबेधी आवरण को तोड़कर उसके दिल तक पहुँचना किसी के लिए भी आसान नहीं था.

वह मुंबई की प्रसिद्ध मैनज्मेंट कॉलेज में बिज़्नेस प्लानिंग की प्रोफ़ेसर थी . बात क़रीब दो साल पहले की है . एमबीए की फ़र्स्ट ईयर की क्लास में पहला पिरीयड अनामिका का ही था . आर्यन अक्सर आधा पिरीयड निकल जाने पर क्लास में आ ता था. कईदिनों तक तो अनामिका कुछ नहीं बोली , पर उस दिन उसे वार्न कर दिया,

” आज का दिन आप क्लास के बाहर ही रहिए , कल अपने आप समय से क्लास में हाज़िर हो जाएँगे .” वह बिना किसी बहस के सिर झुकाता हुआ क्लास से बाहर निकल गया . बाद में स्टाफ़ रूम में उसकी इकलौती सहेली पल्लवी से उसे पता चला की वह किस मजबूरी के चलते लेट आ रहा था .

 

” आज तेरी क्लास के समय आर्यन लॉन में क्यों था ?”

“इन जैसे लड़कों को पढ़ने से कोई लेना – देना नहीं है ये अपने पिता की पावर के दम पर सिर्फ़ डिग्री हासिल करने कॉलेज चले आते हैं .”

” तू आर्यन के बारे में ग़लत सोच रही है . उसके तो पिता ही नहीं है . वह बोरिवली में एक एनजीओ द्वारा संचालित बॉय्ज़ होम में रहकर पला – बढ़ा है . उसे यहाँ तक पहुँचने में दो ट्रेन बदलनी पड़ती है . बहुत ही अच्छा लड़का है , दूसरों से बिलकुल हटकर . तू एक काम कर सकती है . उसे अपने बंगले पर पेइंग गेस्ट की तरह रख ले . इससे अंकल के जाने के बाद तेरी ज़िंदगी में आया सूनापन भी भर जाएगा .”

उस समय तो उसने पल्लवी की बात को हवा में उड़ा दिया था . पर साल भर में अनामिका ने भी परख लिया था कि आर्यन पढ़ाई के प्रति कितना गम्भीर है . वह अपना अतिरिक्त समय और लड़कों की तरह कैंटीन में ना बिता लाइब्रेरी में बिताता था और शाम के समय स्कूली बच्चों के ट्यूशन्स ले अपना ख़र्चा ख़ुद निकालता था .

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