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लेखिका- मेहा गुप्ता 

बहुत सोच - विचार के बाद अनामिका ने पल्लवी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था . उसका ज़ूहु पर सी फ़ेसिंग बंगलो था जिससे कॉलेज दस मिनीट की ही दूरी पर था . अब आर्यन, अनामिका के साथ उसकी गाड़ी में ही कॉलेज जानेआने लगा था . आर्यन के सानिध्य से अनामिका के आँसू हँसी में और उदासी शोख़ी में बदल गई थी . दोनों साथ में बैठ कर पढ़ा करते थे . अनामिका अपनी थिसिस लिखती और आर्यन इग्ज़ाम की तैयारी करता . कुछ लिखते - पढ़ते समय उसके हाथ से आर्यन का हाथ छू जाए तो उसके मन के तार झन्कृत होने लगते थे . दोनों के दरमियान एक अजीब सी मादकता और तन्मयता पसरी रहती . एक दिन ऐसे ही अवसर पर आर्यन ने अनामिका का हाथ पकड़ लिया .

"मैम आपको नहीं लगता अब हमारे रिश्ते को एक नाम मिल जाना चाहिए ?" कहते हुए आर्यन कुर्सी पर से उठकर उसके पैरों के पास घास पर ही बैठ गया .

"विल यू मैरी मी ?"उसके स्वर में भावुक सी याचना थी . पल भर को वह सिर से पैर तक काँप उठी .

" पागल मत बनो आर्यन .. एक बार ये सोचने से पहले हम दोनों के बीच का उम्र का फ़ासला तो देख लेते . "

" मैंने आपसे प्यार करते वक़्त आपकी उम्र को नही आपकी रूह को परखा था ."और उसने अनामिका के लिए एक शायरी कह डाली .

"पनाह मिल जाए रूह को

जिसका हाथ छूकर

उसी की हथेली को घर बना लो "

" अच्छा तो आप शायरी भी कर लेते हैं ?"

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