नविता शुभांगी को मांबाबूजी समझासमझा कर हार गए लेकिन शादी के मामले में उस ने किसी की न सुनी. कोई न कोई कमी उसे हर लड़के में नजर आ जाती और झट उसे नापसंद कर देती. लेकिन भाभी ने शुभांगी को आत्ममंथन के लिए ऐसा प्रेरित किया कि... आज घड़ी की सूइयां कुछ ज्यादा ही तेज रफ्तार से भाग रही थीं. काम निबटाते हुए पता ही नहीं चला कि कब 5 बज गए. मां, बाबूजी और शुभांगी आने वाले थे. अनिकेत उन्हें लेने स्टेशन गए थे. बच्चे भी दादी, बाबा और बूआ के आने को ले कर उत्साहित थे. ‘‘रोहित, रुचि, कोई चीज इधरउधर मत फैलाना, मैं ने अभी सब ठीक किया है,’’ मैं किचन से ही उन्हें निर्देश दे रही थी. ‘‘मम्मी, हम तो स्टडी रूम में हैं, कंप्यूटर के पास,’’ रोहित ने आश्वस्त किया. तभी गाड़ी के रुकने की आवाज आई. ‘लगता है वे लोग आ गए,’ मैं ने सोचा और जल्दी से साड़ी ठीक कर पल्लू सिर पर लिया और दरवाजा खोला. बहुत दिनों बाद उन का आना हुआ था.

मैं ने सब के पैर छुए. ‘‘खुश रहो, बेटी,’’ बाबूजी ने सदा की तरह अपना स्नेहभरा आशीर्वाद दिया और बोले, ‘‘बच्चे कहां हैं, दिखाई नहीं दे रहे?’’ ‘‘अभी बुलाती हूं, बाबूजी. कंप्यूटर गेम खेल रहे हैं. कब से आप सब का इंतजार कर रहे थे,’’ कहते हुए मैं ने बच्चों को पुकारा, ‘‘रोहित, रुचि, जल्दी आओ, दादी, बाबा और बूआ आ गए.’’ बच्चे दौड़ कर आए और दादीबाबा से लिपट गए. रोहित बोला, ‘‘कैसे हैं आप, बाबा?’’ ‘‘आप जानते हैं, हमारा नया कंप्यूटर आया है,’’ रुचि आंखें मटकाती बोली. उत्साह से भरे दोनों बच्चे अपनीअपनी बातें बताने की होड़ में लगे थे, ‘‘चलो, बूआ आओ तो, आप को दिखाते हैं.’’ ‘‘अरेअरे... रुको तो, अभी सांस तो लेने दो. अभीअभी तो आए हैं. चायनाश्ते के बाद आराम से दिखाना,’’ शुभांगी बोली. लेकिन बच्चों को सब्र कहां था, बूआ को अपने साथ ले जा कर ही माने. ‘‘भाभी, मेरी चाय स्टडी रूम में ही भिजवा दीजिएगा,’’ कहती शुभांगी स्टडी रूम में चली गई.

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