दरवाजा खोलते ही सामने वाले फ्लैट में रहने आए नवयुवक को देख कर मैं चौंक उठी.
“बेबी के कुछ खिलौने मिलेंगें?” उस ने तड़ से पूछ लिया.
“क्या?” मैं बौखला कर उसे देखने लगी. मेरी बौखलाहट स्वाभाविक थी. भला मेरी 2 साल की गुड़िया के खिलौनों से उस नौजवान का क्या लेनादेना?
“दरअसल, अचानक कुछ मेहमान आ गए. उन के संग छोटा बच्चा है, तो उस के लिए...”
“ओह,” मैं मुसकरा उठी. और अंदर से काफी सारे खिलौने ला कर उसे थमा दिए.
“थैंक्यू भाभी,” कह कर वह चलता बना.
अगले दिन शाम को खिलौने लौटाने आया तो काफी देर मीठी के साथ खेलता रहा. मैं ने मीठी के लिए दूध बनाया तो उस के लिए कोल्डकौफी बना ली. गिलास थमाते हुए मैं ने बात शुरू की, “बच्चों से बहुत लगाव दिखता है आप को?”
“हां. फिर मीठी तो है ही इतनी मीठी. कोई इस के संग खेलने से खुद को कैसे रोक सकता है. औफिस की सारी थकान, तनाव मिट गया है.”
“कहां काम करते हो, अकेले रहते हो...” जैसे छिटपुट प्रश्नों के साथ बातचीत का सिलसिला चलता रहा. पता लगा किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पद पर है. शादी अभी नहीं की है. उस दिन के बाद वह मीठी के संग खेलने अकसर आने लगा. मीठी भी उसे देख कर किलक उठती. खूब घुलमिल गई थी उस से. अपनी तुतलाती जबान में जब वह शिशिर को चाचा कह कर पुकारती तो वह निहाल हो उठता. मेरे मना करने के बावजूद वह अकसर उस के लिए खिलौने, चौकलेट आदि ले आता. जिस अधिकारभाव से वह यह सब करता, मेरे लिए उसे रोकना मुश्किल हो जाता. प्रत्युतर में, बस, इतना ही कर पाती कि उसे कुछ न कुछ खिलापिला कर ही विदा करती. शायद कुछ रिश्तों की गरिमा इसी तरह बनाए रखी जा सकती है.
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